जो आर्थिक नीति मनमोहन सिंह ने 1991 के बाद देश में चलाई जो कि अमेरिका ब्रिटेन की तर्ज पर थी। जिसमे एफडीआई था, पीपी मॉडल था, हर सेक्टर में विदेशी निवेश था। उसने भारत में कॉर्पोरेट की चकाचौंध और तकनीक को तो बढ़ाया और सायद जीडीपी के आंकड़े भी बढे लेकिन उसने भारत के लघु उद्योगों को भी जड़ से समाप्त कर दिया। जब से भारत में नई आर्थिक नीतियां लागू हुई तबसे किसानो के लिए सरकार के आम बजट से पैसा काम होता गया। किसान जिन्दा रहे या न रहे किसी ने सोचा नहीं। अब मोदी भी मनमोहन की उसी खींची लकीर को पकडे हुए हैं। और दुनियाभर में घूम-घूम कर पैसा मांग रहे हैं भारत में अपने उद्योग लगाने को कह रहे हैं। लेकिन सरकारों को यह नहीं भूलना चाहिए कि भारत अमेरिका ब्रिटेन की तरह विकसित नहीं है इस नीति की दो योजनाएं कोयला घोटाले और 2जी घोटाले के रूप में फेल हो चुकी हैं। कोर्ट ने कहा है कि सरकार कई इस आर्थिक नीति में ही खामी थी। तो क्या यह मान लिया जाए कि सरकारें जो नीतिया विकास के नाम पर बना रही है वह मात्र लूट का साधन है।
यहाँ आज भी आधी से ज्यादा आबादी रोटी पानी के लिए ही तरस रही है। इससे जीडीपी के आंकड़े तो जरूर बढ़ सकते है लेकिन गरीबी नहीं। सरकारें विकसित देशो की आर्थिक नीतियों की नक़ल तो कर सकती हैं लेकिन इस नई आर्थिक नीति को ऑपरेट नहीं कर पा रही है। आधा ज्ञान हमेशा खरतरनक होता है। मनमोहन सिंह दुनिया के बड़े अर्थशास्त्री माने जाते हैं लेकिन विकसित अर्थव्यवस्था के मॉडल को भारत में लागू करने में इसीलिए फेल हो गए। तरक्की के लिए स्पेक्ट्रम वितरित किये लेकिन लूट मच गई, देश के पावर सेक्टर बढ़ने के लिए कोयले का निजीकरण किया लेकिन कॉर्पोरेट सारी सरकारी सम्पदा को चट कर गया। क्या मनमोहन सरकार को इस बात का ज्ञान नहीं रहा होगा कि एक -एक रूपये के लिए जो कारोबारी गरीबों को नहीं छोड़ते अगर उनको देश की अथाह सम्पदा लूटने की खुली छूट दी जाए तो वो ईमानदारी दिखाएंगे। हुआ भी यही कोयला तो विकास के नाम पर निकला नहीं लेकिन ये कंपनियां मालामाल जरूर हो गई। देश में बिजली की कीमतें आसमान छूने लगी कोयले की इतनी कमी कि विदेशो से आयत करना पड़े और देश अँधेरे में डूबने की कगार पर हो ऐसी विकासीय अर्थव्यवस्था क्या इस देश का भला करेगी। और क्या गारंटी है कि जिस मेक इन इंडिया के नारे को मोदी लगा रहे हैं दुनिया भर को कहा जा रहा है कि भारत में आओ अपना सामान भारत में बनाओ और बेचो उसमे लूट नहीं मचेगी। याद रहे सोने की चिड़िया कहे जाने वाले भारत को व्यापार के नाम पर ही विदेशियों ने गुलाम बना दिया था।
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मोदी ने लांच किया मेक इन इंडिया |
यहाँ आज भी आधी से ज्यादा आबादी रोटी पानी के लिए ही तरस रही है। इससे जीडीपी के आंकड़े तो जरूर बढ़ सकते है लेकिन गरीबी नहीं। सरकारें विकसित देशो की आर्थिक नीतियों की नक़ल तो कर सकती हैं लेकिन इस नई आर्थिक नीति को ऑपरेट नहीं कर पा रही है। आधा ज्ञान हमेशा खरतरनक होता है। मनमोहन सिंह दुनिया के बड़े अर्थशास्त्री माने जाते हैं लेकिन विकसित अर्थव्यवस्था के मॉडल को भारत में लागू करने में इसीलिए फेल हो गए। तरक्की के लिए स्पेक्ट्रम वितरित किये लेकिन लूट मच गई, देश के पावर सेक्टर बढ़ने के लिए कोयले का निजीकरण किया लेकिन कॉर्पोरेट सारी सरकारी सम्पदा को चट कर गया। क्या मनमोहन सरकार को इस बात का ज्ञान नहीं रहा होगा कि एक -एक रूपये के लिए जो कारोबारी गरीबों को नहीं छोड़ते अगर उनको देश की अथाह सम्पदा लूटने की खुली छूट दी जाए तो वो ईमानदारी दिखाएंगे। हुआ भी यही कोयला तो विकास के नाम पर निकला नहीं लेकिन ये कंपनियां मालामाल जरूर हो गई। देश में बिजली की कीमतें आसमान छूने लगी कोयले की इतनी कमी कि विदेशो से आयत करना पड़े और देश अँधेरे में डूबने की कगार पर हो ऐसी विकासीय अर्थव्यवस्था क्या इस देश का भला करेगी। और क्या गारंटी है कि जिस मेक इन इंडिया के नारे को मोदी लगा रहे हैं दुनिया भर को कहा जा रहा है कि भारत में आओ अपना सामान भारत में बनाओ और बेचो उसमे लूट नहीं मचेगी। याद रहे सोने की चिड़िया कहे जाने वाले भारत को व्यापार के नाम पर ही विदेशियों ने गुलाम बना दिया था।