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रविवार, 22 दिसंबर 2013

बिछने लगी है 2014 की विसात

45 बरस से कोई भी सरकार जिस क़ानून को बनाने की हिम्मत नहीं जुटा पायी, जिस क़ानून को बनाने लिए के सड़कों पर बड़े- बड़े आंदोलन हुए, आखिर वह लोकपाल क़ानून बिना किसी रुकावट के संसद में पास हो गया,क्या यह चमत्कार था या यह मान लिया जाए कि एक लोकतंत्र की राजनीति सुधर रही है,पारदर्शिता आ रही है,  या यह मान लिया जाए कि पार्टियां आने वाले आम चुनाओ के लिए सियासी विसात बिछा रही हैं ,क्योंकि पहली बार कोई पार्टी हर फैसला जनता की राय लेकर करना चाहती है और सरकार बनाएं कि नहीं यह जानने के लिए जनता के बीच जाकर सभाएं कर रही हैं, वहीँ दूसरी तरफ कांग्रेस पार्टी उसी पार्टी को समर्थन देने के लिए आमादा है जो उसे विलेन बनाकर चुनाव जीती है, लेकिन आम आदमी पार्टी की परेशानी यह है कि उसे सरकार बनाने से ज्यादा चिंता अपने आत्मसमान और साख की है, क्योंकि उसने जनता से वादा किया था कि वह भ्रष्टाचारियों से किसी भी हालत में दोस्ती नहीं करेंगे,

 सरकार बनाने के किये जोड़-तोड़ के तिकड़म करने में माहिर भाजपा भी सत्ता से दूर ही रहना चाहती है,आखिर क्यों ? जबकि भारत की राजनाति के पन्नो को पलटें तो यही मिलेगा कि चुनाव जीतने के बाद चुनावी वादे तो दूर की बात है पार्टियों ने जनता के बीच आना भी उचित नहीं समझा, तो क्या मौजूदा हालात देश के राजनीतिक तौरतरीकों में बदलाव का इशारा कर रही है, जब हर कोई पार्टी सत्ता पाने के लालच से इतर जनता में अपनी साख और भरोसा जगाना चाहती है, क्योंकि दिल्ली में हुए विधानसभा चुनाओ में जिस तरह जनता ने भाजपा कांग्रेस को खारिज कर एक नयी पार्टी को जिताकर यह संकेत दिया कि वो बदलाव चाहती है, कहीं जनता के इस मेसेज से पारम्परिक पार्टियां डर और सहम तो नहीं गयी हैं, इसलिए 2014 में आने वाले आम चुनाओ के लिए कोई गलती नहीं करना चाहती हैं,
इस सच्चाई को किसी भी तरह ख़ारिज नहीं किया जा सकता कि आम आदमी पार्टी ने दिल्ली चुनाओ में जिस ट्रांस्परेंसी से चुनाव लड़ा और जीत दर्ज की उसने अन्य पार्टियों को भी इसी राह पार चलने को मजबूर कर दिया है कि अगर आम आदमी को नजरअंदाज करोगे तो सत्ता बदल दी जायेगी, देश की राजनीति में बदलाव की यह शुरुआत तो आम आदमी पार्टी ने शुरू की है, भले ही वह अपने चुनावी वायदों पर खरी उतरे या नहीं ,
दिल्ली विधान सभा चुनाव में आम आदमी पार्टी ने शायद यह सोचा भी नहीं होगा कि इतनी बड़ी जीत मिल जायेगी इसलिए उसने ऐसा एजेंडा बनाया जिससे आम आदमी में भरोसा जगे, उसने आधारभूत समस्याओ को ही आधार बनाया और वादा किया कि वह लोगों को बिजली पानी सस्ते दामों पर दिलवाएगी, पार्टी की ऐतिहासिक पृष्ठ भूमि देखकर लोगों ने भरोसा किया और बड़ी जीत दिलवायी, अब जनता और विपक्षी पार्टिया दबाव बना रही हैं कि सरकार बनाओ और वादे पूरे करो, वादे भले ही मुश्किल हो लेकिन आम आदमी पार्टी 2014 के चुनावो में उतरने का पूरा मन बना चुकी है, इसलिए आम आदमी को समर्थन देने का कोंग्रेसी दांव उसे भारी भी पड़ सकता है, क्योंकि आम आदमी पार्टी 2014 को लेकर सारे देश में अपना नेटवर्क बना चुकी है कई राज्यों यूपी उत्तराखंड में अपने दफ्तर भी खोल चुकी है, और अगर आम आदमी पार्टी को 2014 के चुनाओ से पहले कुछ महीने सरकार बनाने का मौका मिलता है तो वह अपने किये वादों को पूरा करने की कोशिश करेगी, जिससे जनता में एक सकारात्मक सन्देश जाए भले ही इन वादों कि भरपाई का असर कैसा भी हो, अगर आम आदमी पार्टी यह काम कर गयी तो 2014 का लोकसभा चुनाव कांग्रेस और भाजपा के लिए किसी खतरे से कम नहीं होगा,