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शनिवार, 26 जुलाई 2014

298 यात्रियों सहित मलबे में तब्दील हुआ मलेशियाई विमान

नीदरलैंड्स की राजधानी एम्स्टर्डम से कुआलालम्पुर जा रहे मलेशियाई विमान बोइंग 777 को यूक्रेन के अलगाववादियों ने मार गिराया, इस घटना की सयुक्तराष्ट्र और अमेरिका ने कड़ी निंदा की है। कहा जा रहा है कि यूक्रेन के इन सेपेरिस्टों को रूस लगातार मदद करता आया है।  इसलिए इस घटना के लिए अमेरिकी राष्ट्रपति ओबामा ने रूस को जिम्मेदार ठहराया। मलेशियाई विमान को जिस बक मिशाइल से गिराया गया वह हवा में कई हज़ार किलोमीटर तक मार कर सकने वाली मिशाइल  बताई जा रही है।  तो सवाल यही उठ रहा है की आखिर विद्रोहियों के पास यह मिशाइल आई कहाँ से, क्योंकि इस तरह के हथियार तो रूसी ही बनाता है।  दरअसल कुछ समय पहले चीन ने अपनी विस्तार वादी नीति के तहत यूक्रेन में कुछ जगह ली है जिसको की रूस सही नहीं मान रहा है।  इसलिए वह यूक्रेन के क्रीमिया स्थित विद्रोहियों को लगातार समर्थ देता आया है। आगे अंतर्राष्ट्रीय समुदाय में इस घटना को लेकर क्या होगा? क्या क्रेमियां में रूसी समर्थित विद्रोहियों पर प्रतिबन्ध लगेगा देखना होगा।     

मार गिराये गए मलेशियाई विमान का मलबा 

 

उत्तराखंड उपचुनाव में भाजपा की हार मोदी के लिए चेतावनी

(दैनिक जनवाणी उत्तराखंड से साभार )
खोखले मंसूबों में पंख नहीं लगते। लुभावनी घोषणाओं के नखलिस्तान में उम्मीदों की बारिश नहीं होती। उत्तराखंड में विधानसभा  की तीन सीटों पर हुए उपचुनाव के नतीजों ने साफ कर दिया है कि लुभावने सब्जबाग की उम्र लम्बी नहीं होती है। लोकसभा चुनाव से पूर्व भाजपा ने जितने भी  दावे किए और जो भी घोषणाएं की वह अभी तक घोषणाओं से आगे नहीं बढ़ पाई है। कई मामलों में तो मोदी सरकार समस्याओ के सामने दंडवत नजर आई। महंगाई भगाओ नाम की जिस नाव पर सवार होकर भाजपा ने चुनावी समंदर को पार किया उसी नाव में मोदी सरकार ने सत्तर छेद कर दिए।

 नतीजा सामने है। केन्द्र में मोदी की सरकार बनने के बाद देश में पहली बार विधानसभा  के तीन सीटों पर उपचुनाव हुए। भाजपा-कांग्रेस के बीच सीधी टक्कर हुई और देवभूमि उत्तराखंड की सरजमीं इसका गवाह बनी। इसके बावजूद कि गत लोकसभा  चुनाव में इन सीटों पर भाजपा ने उल्लेखनीय बढ़त बनाई थी, महज ढाई महीने के बाद विस चुनाव हुए तो बीजेपी का पत्ता साफ हो गया। दरअसल यह सब उस राज्य में हुआ है जहां भाजपा खुद को ज्यादा सहज महसूस करती है। एनडीए के शासनकाल में ही उत्तराखंड राज्य का गठन हुआ था। यहां पहली निर्वाचित सरकार भी  भाजपा की ही बनी थी। उसी उत्तराखंड के मतदाताओं ने भाजपा को खारिज कर दिया। ये नतीजे भाजपा के लिए संदेश भी  है और सबक भी । वह किसी भ्रम में ना रहे। उत्तराखंड के चुनावी नतीजे ने साफ कर दिया है कि सिर्फ मोदी लहर पर सवार होकर चुनाव नहीं जीते जा सकते। इस छोटे से प्रदेश ने भाजपा को एक बड़ा संदेश दिया है। भाजपा को समझना होगा कि राज्यों की जरूरतें, वहां के वाशिंदों की अपेक्षाएं और उम्मीदें अलग होती है।यह बात शीशे की तरह साफ हो गयी है कि सिर्फ नमो-नमो के सहारे जनता के दिलों पर राज नहीं किया जा सकता। यदि भाजपा को मोदी लहर पर सवार होकर ही राजनीति करनी है ऐसे में भाजपा को न केवल हाल में होने वाले विधानसभा  के चुनावों के लिए ठोस रणनीति बनानी होगी बल्कि  इस बात का प्रयास भी करना होगा कि लोस चुनाव से पूर्व किए गए वायदों को पूरा किया जाए। आगामी कुछ महीनों में बिहार समेत कई प्रदेशों में विधानसभा  का चुनाव प्रस्तावित है। ये वो राज्य हैं जहां भाजपा की सरकार नहीं है। इसके साथ ही उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब और गोवा की विधानसभा का आधा कार्यकाल बीत चुका है। यानी दो साल बाद इन राज्यों में भी चुनावी बिगुल बजना है। भाजपा को यदि इन तमाम राज्यों में जीत दर्ज करानी है तो उसे अपनी रणनीति बदलनी होगी। सब्जबाग दिखाकर जनता को लुभाने का वक्त अब भाजपा के लिए खत्म हो चुका है। उसे अब जमीन से जुड़ना होगा और जनता तक पहुंचना होगा। वह भी आश्वासनों के साथ नहीं बल्कि विकास की सुहानी तस्वीरों के साथ। पुरानी कहावत है, काम होने से ज्यादा आवश्यक है कि लोगों को यह महसूस हो कि काम हो रहा है। भाजपा ने जो दावे किए और जो वायदे किए उन्हें लेकर एक पल के लिए भी  नहीं लगा है कि उन वायदों पर अमल हो रहा है या भाजपा की ऐसी मंशा है। भाजपा की रणनीति से ऐसा आभास हो रहा है कि वह सिर्फ कांग्रेस को कोसकर सत्ता का सुख भोगना चाहती है। इससे काम नहीं चलेगा।
भाजपा चाहे तो हरीश रावत से यह सबक सीख सकती है। वह चाहे सीएम का सरकारी आवास छोड़कर बीजापुर गेस्ट हाउस में रहने का फैसला हो या फिर शपथ ग्रहण के तत्काल बाद आपदा प्रभावित क्षेत्रों का मैराथन भ्रमण हो।
हरीश रावत ने साबित किया कि पहाड़ और पहाड़ के वाशिंदों का दर्द उनका अपना दर्द है। गर्दन की चोट के कारण एम्स में भर्ती हरीश रावत अपना नामांकन करने तक के लिए प्रदेश में नहीं आए। यहां तक कि उन्होंने एक दिन भी  चुनाव प्रचार में भाग नहीं लिया। अलबत्ता जब उन्हें पता चला कि पहाड़ों पर लगातार बारिश हो रही है और सूबे में पिछले साल जैसे हालात पैदा हो रहे हैं तो वह अपनी बीमारी को भूलकर सीधे देहरादून दौड़े चले आए। हरीश के इस फैसले के पीछे उनकी सियासी रणनीति जो भी  रही हो, जनता ने यही समझा कि यह आदमी उनके बीच का है। इस हार में भाजपा के लिए भी संदेश है। संदेश यह है कि बिना मजबूत नेतृत्व के चुनावी रण में जनता के बीच ठहरना मुश्किल है। जीत हासिल करने के लिए मजबूत नेतृत्व बेहद जरूरी है। नरेन्द्र मोदी में संभावना दिखी तो जनता ने उन्हें हाथों हाथ लिया। भाजपा को यदि लम्बे समय तक खुद को राजनीति में स्थापित रखना है तो राज्यों में उसे अपना मजबूत नेतृत्व तैयार करना होगा।