मेरी ब्लॉग सूची

शनिवार, 26 अक्टूबर 2013

सेक्युलर किस चिड़िया का नाम है भाई?

31 अक्टूबर  1984 सुबह 9:20 मिनट प्रधानमन्त्री इंदिरा गांधी को उनके दो सिख सुरक्षा गार्डो ने उनके सफ्तरजंग स्थित आवास पर गोली मर दी। जिसके तुरंत बाद उन्हें एम्स में ले जाया गया। सुबह 10:50 मिनट पर डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया। सुबह 11 बजे आल इंडिया रेडियो से खबर पूरे देश में आग की तरह फ़ैल  गयी, राजीव गांधी उस वक़्त पश्चिम बंगाल में थे और शाम के 4 बजे वे भी दिल्ली पहुचे, राष्ट्रपति ज्ञानी जैलसिंह सहित कई लोग वहां पहुचे। इन सब घटनाओं के फलस्वरूप 3 नवम्बर तक देश भर में सिख विरोधी दंगे होते रहे जिनमे देश भर में 8000 के करीब सिखों को दंगाईयो ने मार दिया, सिर्फ दिल्ली में 3000 सिखों की हत्याए हुई।  जिसमे जिन्दा जलाना, लूटपाट, और बलात्कार जैसी घटनाये शामिल थी, इस दंगे को सिख नरसंहार के रूप में भी जाना गया, इन् दंगो को भड़काने में कांग्रेस के कई बड़े नेताओं के नाम आये जिनमे सज्जन कुमार, जगदीश टाइटलर, जैसे नाम शामिल थे, लेकिन जब देश में 1984 के लोकसभा चुनाव हुए तो उसने देश की जनता ने इंदिरा गांधी को कांग्रेस पार्टी को 515 में से 404 सीटें जीता कर इंदिरा गांधी को याद किया, हालाँकि उस दौर में तेलगुदेशम पार्टी को भी 30 सीटें मिली और वो दुसरे स्थान पर रही।

अब आपको याद दिलाना चाहता हूँ 2002 हुए दंगो की जिनको मुश्लिम की हत्याओं के रूप में जाना गया। 2002 की गुजरात हिंसा भारत के गुजरात राज्य में फरवरी और मार्च 2002 में होने वाले सांप्रदायिक हत्याकांड तब शुरू हुआ जब 27 फरवरी 2002 को गोधरा स्टेशन पर साबरमती ट्रेन में आग से अयोध्या से लौट रहे हिन्दुत्व से जुड़े 59 हिंदु मारे गए यह घटना स्टेशन पर किसी मुसलमान रहने वाले के साथ कारसेवकों के झगड़े के बाद घटी बताई जाती है। कहा जाता है कि मुसलमान एक ग्रुप ने ट्रेन के विषेश डिब्बे को निशाना बनाकर आग लगाई। यह गुजरात में मुसलमानों के खिलाफ एकतरफा हिंसा का माहौल बन गया। इसमें लगभग 790 मुसलमानों एवं 254 हिन्दुओं की बेरहमी से हत्या की गई या जिंदा जला दिया गया। उस दौर में गुजरात की सत्ता भाजपा के हाथ में थी और नरेन्द्र मोदी मुख्यमंत्री, और केंद्र में भी भाजपा की ही सरकार थी अटल बिहारी वाजपेयी प्रधान मंत्री थे। मोदी को इन दंगो के लिए जिम्मेदार उनके विरोधियों ने ठहराया और माया कोडनानी और अन्य लोगो पर मुक़दमे  भी चले। लेकिन 2007 में गुजरात में जब फिर विधान सभा चुनाव हुए तो मोदी को ही वहाँ की जनता ने गुजरात की गद्दी थम दी, तो समझिये की इस देश में दंगो का मतलब आखिर होता क्या है।
बात 1984 दिल्ली सिख के दंगो की हो, 2002 के गुजरात दंगो की हो या फिर 2013 में मुजफ्फर नगर के दंगो की हो, इस सबको लेकर एक ही बात कही गयी इतने सिख मारे गए, इतने मुस्लिम मारे गए या इतने हिन्दू मारे गए, लेकिन किसी ने ये नहीं कहा की इतने भारतीय नागरिक मारे गए। क्योंकि साम्प्रदायिकता ही इस देश में लोकतंत्र का मतलब हो चूका है, या ये कहे की इस धर्मनिरपेक्ष देश में नेता अलग -अलग धर्मो के लोगो लो लडवा कर गद्दी पाने का हथियार बनाते हैं। जैसे गुजरात 2002 के दंगो को कोंग्रेस आज भी अपना चुनावी हथियार बना रही है और भाजपा 1984 के सिख दंगो को, और इस देश में दंगो के बाद हुए चनावो का इतिहास भी यही बताता है की जिनपर दंगे करवाने के आरोप लगे उन्ही को जनता ने गद्दी दी, बात 1984 की हो या 2002 की, हालही में मुजफ्फरनगर में हुए दंगो को अपना चुनावी हथियार बनाने में लगी है।
दरअसल देश का नेतृत्व करने वाले नेताओं की पहचान सेक्युलर होने के बजाय कम्युनल होती जा रही है। बात भाजपा के पीएम् पद  उम्मीदवार मोदी की करे तो उन पर विपक्षी पार्टियां मुश्लिम विरोधी होने का आरोप लगाती रही है, और मोदी भी अपनी इस मुश्लिम विरोधी छवि को मिटाने की कोशिश  करते है, लेकिन वे कभी मुश्लिमो का विश्वास जीत नहीं पाये,  कुछ समय पूर्व मोदी ने एक मुश्लिम संगठन से पुछा  था की मुश्लिमो का विश्वास कैसे जीता जा सकता है, और उनका जवाब सीधा था की 2002 के दंगो के लिए माफ़ी  मांगे चूंकि आप उस राज्य के मुख्यमंत्री उस दौर में थे।  हालांकि अब भाजपा माफ़ी  मांगने का यह उपदेश  मुज़फ्फरनगर दंगो  के बाद मुलायम सिंह को देने लगी है।  लेकिन दूसरा सच यह भी है की हिन्दुत्व भाजपा का मूल वोटबैंक है, और इस देश में ज्यादा वोट भी हिन्दुओ के ही हैं, तो मोदी माघ्ी क्यों मांगें? भाजपा हिन्दुत्व विचारधारा से निकली पार्टी है, इसलिए हिंदुओ को कभी नाराज नही कर सकती, जब भी चुनाव आते हैं राम मंदिर का जिन्न बाहर आ जाता है, भले ही भाजपा राम मंदिर के निर्माण को अपना चुनावी एजेंडा कहने से इंकार करती रही हो लेकिन हिडन ही सही यह मुद्दा भाजपा का सबसे बड़ा  हथियार तो है ही, और भाजपा इस अजेंडे को चुनावी मौसम में विहिप जैसे अपने संगठन से करवाती है, और विहिप की 84 कोसी यात्रा शुरू हो जाती है,
क्या इस देश में कोई ऐसा नेता है जो एक मंच से पूरे देश को एक साथ यानि किसी धर्म का नाम लिए बिना सम्बोधित कर सके? शायद नहीं!  दूसरी तरफ सत्ताधारी पार्टी कांग्रेस भी खुद को हमेशा सेक्युलर कहती आयी है, लेकिन साम्प्रदायिकता से इस पार्टी की भी बड़ी दोस्ती है, गांधी और परिवार वाद के नाम से हिन्दू वोट कांग्रेस को मिलते आये है लेकिन मुसलमानो को लेकर कांग्रेस सांप्रदायिक लगने लगती है। गांधी से गोधरा हत्याकांड़ का जिम्मेदार भाजपा को बता डालती है।  तक देश में सबसे ज्याद समय तक राज करने वाली कांग्रेस की सरकार ने मौजूदा दौर में देश में महगाई और भ्रष्टाचार की स्थितियों को पैदा किया है, इसलिए कांग्रेस का चुनावी एजेंडा विकास न रेह्कर परिवारवाद और हिन्दू मुस्लिम वाला ही नजर आता है। इसका उदाहरण मात्र है कांग्रेस पार्टी के युवराज और पीएम उम्मीद वार राहुल गांधी का ताघ चुनावी भाषण जिसमे उन्होंने कहा की जिन लोगो ने मेरे पापा और दादी को मारा वो मुझे भी मार डालेंगे। इसलिए मैं डरता हूँ, लेकिन इस देश की सच्चाई यह है भी या नहीं की आखिर इस देश में डरता कौन है? नेता या दंगो के शिकार हघरो लोगो के परिवार? जिनके घरो में एक साथ कई लोगो की जान चली  जाती है, या वो नेता जो इन दंगो को अपनी चुनावी रोटी समझते है, अब तय इस देश की जनता को करना है की उनका भविष्य कैसे सुरक्षित हो  सकता है,

शुक्रवार, 25 अक्टूबर 2013

पत्रकारों की एक नई जमात विलुप्ति की कगार पर


कृपया पत्रकारिता को ग्लेमर समझने की भूल ना करें। दरअसल टेलीविजन के इस दौर में जिस तरह से पत्रकार बनने का चलन शुरू हुआ है उसमे हर कोई पत्रकार बनता जा रहा है। मैने तो सुना था कि पत्रकार और कलाकार किसी फैक्टी में नही बनाये जाते लेकिन जिस तरह एक दिन से लेकर साल तक पत्रकार बनाने की गारंटी दी जा रही है वह सच में लोकतंत्र के इस चैथे खंभे जर्जर बनाता जा रहा है।
आदरणीय राजेन्द्र माथुर कहते थे कि जो नेता कहे वो सूचना है.. जो कैमरा दिखाये वो तकनीक  और जो इसके पाछे का सच दिखाये वो पत्रकार है तो क्या आज के दौर में क्या वो वक्त आ गया है जब सूचना और तकनीक ही पत्रकारिता का मापदण्ड़ रह गई है। और पत्रकार बनाने का ये कारोबार खुद शुरू किया है उन्ही मीडिया संस्थानों ने जो खुद को राष्ट्रीय मीडिया कहने से नही चूकते हैं। और उन्ही फैक्ट्रियों  से निकली ऐसी ही पैदावार लाकतंत्र के चैथे खंभे को खोखला करता जा रहा है..... जब से पत्रकारिता में टेलीविजन आ गया तब से खबरों की खरीद फरीख्त होने लगी है। जनता पत्रकारिता को एंटरटेनमेंट तथा पत्रकारों को एंटरटेनर समझने लगी  है। अर्थात पब्लिक परसैप्शन मीडिया अपनी विश्वसनीयता खोती जा रही है। इस मामले में टेलीविजन बहुत आगे निकल चुका है। में तो कहता हूं टीवी को जर्नलिज्म ना माना जाय इसे मात्रा चलचित्र दिखाने की मशीन माना जाए। जिस के दम पर ये छाया हुआ है। भले कागजी पत्रकारिता का भी कोई सुनहरी दौर नही है। समाज में अपराधी, और भ्रष्ट प्रवृत्ति के लोग कैसे हमारे लीड़र बन जा रहे हैं? कैसे चुनाव जीत जा रहे हैं ? क्या इसमे आज के दौर की जर्नलिज्म का फेल्योर नही हम उनका असली चेहरा समाज के सामने नही दिखा पा रहे हैं। हम उन्हें उनके असली रूप में प्रस्तुत नही कर पा रहे है। क्यों हम उन्हें टेलीविजन की उस चर्चा में बुलाकर सम्मान देते है जिसमें उन्ही के अपराधों और भ्रष्टाचारों पर चर्चा हो रही होती है। क्या इससे जनता इससे गुमराह नही होती। क्या मीडिया संस्थान अपनी इकनोमी  बनाने और कार्पोरेट के दबाव में अपनी लाकतांत्रिक जिम्मेदारी को भूलती जा रहे है । मेरे जहन में कई सवाल है जिनमें से कई सवाल यह लेख टाईप करते वक्त याद नही आ रहे क्योकि थोडी अनुभव लिखने का कम है। चुनने का तरीका तो इस देश में बद् से बदतर होता जा रहा है चाहे वो नौकरशाही हो, राजनीति हो या मीडिया,,,योग्य पत्रकारों को कोई नौकरी देना नही चाहता सभी अपनी लाइन डाईवर्ट कर रहे हैं मेरे अधिकतर दोस्त कर चुके हैं मैं ही किसी तरह टिका हुआ हूं। युवा पत्रकारों की एक नई जमात विलुप्ति की कगार पर है। क्या ये सरकार की जिम्मेदारी नही कि लोकतंत्र की मजबूती के लिए युवा एव योग्य पत्रकारों को प्रोत्साहन दे। जिससे उनकी रोजी रोटी भी चल सके । जिससे कि कार्पोरेट के चंगुल से मीडिया आजाद हो खुलकर अखबार सच छापे,, कोई खबर ना दबे। देश में कोई ऐसा अखबार नही जो जनमुखी पत्रकारिता कर रहा हो। खबरें एजेंसी और गूगल सर्च पर निर्भर है। ग्रांउड जीरो पर जाने जैसी तो कोई बात ही नही सारी जनकारी सूत्र ही देते हंै। ये तथाकथित पत्रकार मौसम की सूचना भी अपने सूत्रों से मांगते है। जैसे कि खबरों का अकाल पड गया हो पूरे दिन एक ही खबर, कार्पोरेट के इर्द -गिर्द सारी खबरें और इस सबके इतर सच यह भी है कि जैसे कि इस देश में किसी के साथ अन्याय ही ना हो रहा हो, कोई किसान आत्महत्या ही न कर रहा

बिना बीरप्पन के भी फलफूल रहा है चन्दन तस्करी का खेल

        सुनील रावत की रिपोर्ट..................
18 अक्टूबर 2004 को पुलिस ने कुख्यात चन्दन तस्कर वीरप्पन को मार गिराया, जिसे सरकार ने बड़ी उपलब्धि बताया और दावा किया था कि अब चन्दन की तस्करी रुक जाएगी। लेकिन उसके बाद डीआरआई ने साल दर साल जो आंकड़े छापे उसने सबको हैरत में डाल दिया, आंकड़ो के मुताबिक 2005-2006 में डीआरआई लाल चंदन की 500 मीट्रिक टन जब्त किया, 2006-2007 में, यह 700 मीट्रिक टन हो गया था और 2007-2008 में, दौरे दोगुनी. लेकिन 2008-2009 में, यह पहले से ही लगभग 1000 मीट्रिक टन तक था और आज 2013 में भी चन्दन की तस्करी की गति में कोई कमी नहीं आई है। दिल्ली में तुगलकाबाद और आईजीआई एयरपोर्ट पर भी तस्करी की कई खबरें जगजाहिर हुई है। सूत्रों के अनुसार जितनी चन्दन पकडी जाती है उससे सौ फीसदी चन्दन को सफलतापूर्वक तस्करी द्वारा भेजी जाती है। इस तस्करी में सम्बन्धित विभाग के अफसरों की मिलीभगत से भी यह काम किया जाता है। भारत के कई बड़े बन्दरगाहों और ड्राईपोटों से चन्दन की लकडी  निकाली जा रही है।

 सूत्रों अनुसार दिल्ली में चन्दन की तस्करी का मास्टर माइंड़ गुड़गांव में रहता है। अभी हालही में आईसीडी तुगलकाबाद से  दो कन्टेंर चन्दन की लकडी के हांगकांग भेजें गये। पूछताछ के बाद डीआरआई ने ये कन्टैंनर दिल्ली वापस मंगा लिया है। जिनमें चन्दन की लकडी मौजूद है।
 वर्ष 2013 की बात करे तो अखबारों में छपी रिपोर्टों के अनुसार  तस्करी के मामले कुछ इस तरह हैं।
4 फरवरी 2013-मुंबई के ठाणे में तस्करी के लिए ले जाई जा रही 2 करोड़ की चन्दन बरामद की गयी।
17 मार्च 2013- पीलीभीत जिले के पूरनपुर के पास जंगल में पुलिस ने लगभग 15 करोड़ रुपये मूल्य की चंदन की लकड़ी बरामद की।
13 अप्रेल 2013 - मुंबई के उरण के चिर्ले गांव में छापा मारकर नवी मुंबई पुलिस की क्राइम ब्रांच टीम ने बेशकीमती लाल चंदन से भरे आठ कंटेनरों को अपने कब्जे में ले लिया। इस मामले में सभी आरोपी फरार हो गये। आठ बड़े कंटेनरों में लदा लाल चंदन का यह कंसाइनमेंट अरब देशों के लिए भेजा जा रहा था। जिसकी कीमत करोडो में बतायी गयी।
15 जून 2013 - नवी मुंबई स्थानीय क्राइम ब्रांच ने 66 लाख रुपये के कीमत की लाल चंदन की एक बड़ी खेप जब्त की है। इस खेप को विदेश भेजने के फिराक में दो तस्करों को गिरफ्तार कर लिया है।
16 जुलाई 2013-लाल चंदन की तस्करी में सबसे बड़ा भंडाफोड़, प्याज के बहाने दुबई भेजे जा रहे लाल चंदन से भरे 8 कंटेनर जब्त  100 टन से अधिक की बरामदगी, अंतरराष्ट्रीय बाजार में 100 करोड़ रुपये से अधिक की कीमत
19 अगस्त 2013- चैन्नई के कोयंबटूर जिले के पोल्लाची के समीप एक गोदाम से पुलिस ने करीब 30 टन चंदन की लकड़ी जब्त की। इस मामले में छह लोगों को गिरफ्तार भी किया गया। माना जा रहा है कि चंदन की इन लकडियों की तस्करी कर केरल ले जाया जा रहा था।
8 सितम्बर 2013- छत्रापति शिवाजी इंटरनैशनल एयरपोर्ट पर तस्करी की घटनाएं रुकने का नाम नहीं ले रही हैं। ताजा मामले में मुंबई एयरपोर्ट के सुरक्षा अधिकारियों ने चंदन की तस्करी के आरोप में जेन जिटेंग नामक शख्स को गिरफ्तार किया है। उसके पास से 60 किलो चंदन बरामद किया गया।
26 सितम्बर 2013- गुप्त सूचना के आधार पर पनवेल वन विभाग ने पुलिस की सहायता से पनवेल के एक गांव के पास खड़े कंटेनर पर छापा मारते हुए करीब डेढ़ करोड़ रुपये से भी अधिक मूल्य का 10 मेट्रिक टन लाल चंदन बरामद कर लिया है।
21 अक्टूबर 2013  -डीआरआई ने चन्दन की तस्करी से जुडे एक बड़े रैकेट का पर्दाफाश करने का दावा किया।
 अधिकारियों ने कई गोदामों पर छापा मारकर भारी मात्रा में चन्दन की लकड़ी जब्त की है। विभाग ने दिल्ली के अलावा जयपुर में भी छापे मारकर विदेशी नागरिक सहित पांच लोगो को अरेस्ट किया। गिरफ्तार आरोपियों की पहचान कमल नेगी (37) दलजीत सिंह (28) सौरभ चोपड़ा (28) मयूर रंजन उर्फ विजय (27) और थाईलैंड निवासी योदिंग(47) के रूप में हुई है। सूत्रों का कहना है कि इनमे से सौरभ चोपड़ा को सेशन कोर्ट से जमानत मिल गयी है। बाकी चारांे आरोपी न्यायिक हिरासत के तहत जेल में बंद हैं।
सूत्रों के अनुसार डीआरआई को सूचना मिली थी कि दिल्ली में चन्दन के तस्करों ने अलग-अलग गोदामों में भारी मात्रा में चन्दन की लकड़ी छिपाकर रखी हुई है। चन्दन की लकड़ी का यह खेप अवैध रूप से विदेश भेजी जानी थी। दिल्ली के अलावा जयपुर में भी भारी मात्रा में चंदन की लकड़ी छिपाकर रखी हुई है। इस पर डीआरआई अधिकारियों ने दिल्ली में पुरानी सब्जी मंडी इलाके में स्थित केदार बिल्डिंग पर छापा मारा। छापे के दौरान बिल्डिंग से 14.5 किलो लाल चन्दन की लकड़ी के अलावा 75.8 किलो ब्राउन कलर की चन्दन की लकड़ी बरामद की। छापे के दौरान शिव कुमार जोगी नामक शख्स ने दावा किया की यह लकड़ी उसने 10 लाख रूपये में खरीदी है। लेकिन वह कोई लिखित दस्तावेज नहीं दिखा पाया। डीआरआई ने यहाँ से 14 लाख 50 हजार रूपये की नगदी भी जब्त की।
डीआरआई अधिकारियों ने वजीरपुर इलाके में स्थित गोदाम पर छापा मारकर भारी मात्रा में चन्दन की लकड़ी जब्त की। गोदाम से चन्दन की लकड़ी  के 95 बड़े लट्ठे 251२छोटे टुकडेघ्, चन्दन की लकड़ी के टुकडो से भरे 213 बैग,108 छोटे लकडी के छोटे टुकडेए 80 बैग चन्दन की लकड़ी का पाउडर, 89 बैग चिप्स, 44 बैग बुरादा जब्त किया। टीम ने पीतम पूरा में मयूर रंजन के घर से छापा मारकर एक्सपोर्ट से सम्बंधित दस्तावेज जब्त किये। डीआरआई अधिकारियों ने होगंकोंग के कस्टम विभाग से चन्दन की लकड़ी के तस्करी के सम्बन्ध में जानकारी पता की तो उन्हें पता चला कि 27 जून 2013 को उन्होंने इंडिया से भेजी गयी 17,157 किलो चन्दन की लकड़ी बरामद की थी। जब्त की गयी लकड़ी की कीमत 4 करोड़ के आसपास बतायी गयी है। अधिकारियों ने जयपुर में भी छापे मारकर चन्दन की लकड़ी की तस्करी करने के आरोप में एक विदेशी सहित पांच लोगो को अरेस्ट किया। आरोपियों का राममनोहर लोहिया हाॅस्पिटल में मेडिकल करवाने के बाद उन्हें दरिया गंज थाने के लॉकअप  में रखा गया था। यहाँ से सभी आरोपियों को सम्बंधित कोर्ट में पेश किया गया।
24 अक्टुबर 2013- मुंबई एयरइंडिया ने चंदन की लकड़ी की तस्करी के आरोप में दो कर्मचारियों को निलंबित कर दिया गया और मामले की जांच के आदेश दे दिए हैं। एयरइंडिया के दो विमान परिचारकों मिलिंद दावणे और निधिन कोरोह को कस्टम की वायु खुफिया इकाई ने इंदिरागांधी हवाईअड्डे पर रविवार को गिरफ्तार किया। मुंबई निवासी ये परिचारक 56 किलोग्राम चंदन की लकडी हांगकांग भेजने की कोशिश कर रहे थे। तस्करी का यह मामला उस समय प्रकाश में आया जब एक खुफिया जानकारी के बाद इनके सामान को एक्स-रे मशीन से गुजारा गया। एयरइंडिया के प्रवक्ता ने कहा, दो विमान परिचारकों के चंदन की लकड़ी की तस्करी के मामले में पकड़े जाने के बाद हमने इन्हें निलंबित कर दिया है और इनके खिलाफ जांच भी शुरु की जा चुकी है। यदि ये परिचारक जांच में दोषी पाए जाते हैं तो इनके खिलाफ कड़ी अनुशासनात्मक कार्रवाई की जा सकती है।
इन 2013 की घटनाओं को परत दर परत हम आपके सामने इसलिए रख रहे है क्यों की चन्दन की तस्करी का खेल लगातार खुलेआम गति पकड़ता जा रहा है और इसका फायदा तस्कर ही नहीं बल्कि जिम्मेदार पदों पर बैठे लोग भी कर रहे है एयर इंडिया के दो क्रू मेम्बर का पकड़ा जाना इसकी पुष्टि करता है, पहले भी तुगलकाबाद आई सी डी जैसी जगहों पर ऐसे मामले पकडे जा चुके हैं।
चंदन और लाल चंदन दुर्लभ और नायाब है. यह वास्तव में सोने से भी अधिक मूल्यवान है. कुख्यात चंदन तस्कर वीरप्पन के आस - पास नहीं होने के बावजूद, लाल चंदन विलुप्त होने की कगार पर है.उसे पुलिस द्वारा 2004 मार गिराया गया था। पहले वीरप्पन चंदन जंगल के राजा के रूप में जाना जाता था। लेकिन उनकी विरासत जारी है. चंदन की एक बहुत महगी और धार्मिक महत्वपूर्ण किस्म लाल चंदन विलुप्त होने की कगार पर है। कहा जाता है आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु सीमा चंदन की इस विशेष किस्म के लिए मशहूर है चीन से यह 18वीं सदी में लाल चंदन फर्नीचर का एक टुकड़ा 35 मिलियन की की कीमत में मिलता था। लेकिन अब यह लाल चंदन मूल के अपने देश से तेजी से गायब है। इसके निर्यात पर प्रतिबंध के बावजूद, लकड़ी चीन और जापान के लिए बड़ी मात्रा में तस्करी द्वारा भेजी जाती है। लकड़ी तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश और मणिपुर में एक राजनीतिक रूप से जुड़े माफिया इसको चला रहे हैं। राजनीतिक दलों के नेता दिल्ली, कोलकाता, आंध्र प्रदेश और चेन्नई से चन्दन की तस्करी में लिप्त है। वित्त मंत्रालय के सूत्रों का कहना है कि यह चन्दन तस्करी  10,000 करोड़ रुपये बाजार है। देश भर के  बंदरगाहों में डीआरआई बरामदगी पिछले चार वर्षों में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है।