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गुरुवार, 27 फ़रवरी 2014

क्या सचमुच सेक्युलर हो चुकी है भाजपा ?

मुक्तिबोध कहते थे पार्टनर आपकी पॉलिटिक्स क्या है ? वाकई पॉलिटिक्स में कब क्या हो जाए कोई कह नहीं सकता दरअसल भाजपा 2014 के मध्यनजर वह कर रही जो न उसकी विचारधारा से मेल खाता है और न ही जिसका पाठ उसे कभी संघ ने पढाया, दरअसल भाजपा डी कार्ड और एम कार्ड के आसरे 2014 फतह करने के फुल मूड़ में है। अपने डी कार्ड की बिसात भाजपा यूपी और बिहार में वहां के दलित नेता रामविलास पासवान और उदित राज के आसरे बिछाने की तैयारी कर चुकी है।

 बिहार में 23 फीसदी और यूपी में 22 फीसदी दलित वोट हैं जो कि दलितों के ही पक्ष ही पडते हैं, और यूपी, बिहार में ऐसा कोई दलित चेहरा भाजपा के पास है नहीं जो सीट दिल सके, इसलिए  अगर किसी तरह भाजपा इन वोटों में सेंध लगाने में कामयाब होती है तो उसे यूपी, बिहार की 120 सीटों पर भारी लाभ होगा। याद करें तो आज से ठीक 12 बरस पहले 27 फरवरी 2002 को गुजरात के गोधरा में दंगों की आग भडकी थी. और उसके बाद ही एनडीए के गठबंधन से लोजपा के रामविलास पासवान इस गठबंधन से इसलिए चलते बने क्योंकि भाजपा पर लगातार साम्प्रदायिकता के आरोप लग रहे थे. लेकिन सत्ता से दूर रहने की गलती शायद पासवान के समझ में आ गयी इसलिए अब 2014 के मध्यनजर भाजपा के पक्ष में हवा बहती देख वापस आने की सोच रहे है। सत्ता के सुख पाने के लालच में राजनीतिक पार्टियों की विचारधारा लगातार हाशिये पर आ रही हैं. याद करें तो वी.पी सिंह ने जब दलितों के लिए आरक्षण की बात की तो मंडल आयोग का विरोध करने में सबसे पहले आरएसएस और भाजपा ही थे। ये ही नहीं जब 90 के दौर में आडवाणी देशभर में रथयात्रा कर रहे थे तो पासवान विरोध करने वालों में सबसे पहले थे। अर्थात  संघ और अम्बेडकरवादी सोच ने कभी एक दुसरे से समानता नहीं रखी. लेकिन इन सबके विपरीत 2014 के सत्ता के खेल में ऐसे ही कुछ ऐसे कारनामे हो रहे है जिसके बारे में न कभी बीजेपी ने सोचा और न ही कभी संघ ने. क्योंकि संघ के ही स्वयंसेवक मोदी पहली बार संघ की सोच के इतर ऐसा ही रास्ता अपना रहे है जहाँ विचारधारा गायब है और भाजपा सेक्यूलर रंग में रंगकर 2014 में सत्ता पाने के लिए ऐसा कुछ भी करने करने पर आमादा दिख रही है जो कभी भाजपा के ऐतिहासिक विचारधारा में रहा ही नहीं।
वही भाजपा एम कार्ड यानी मुस्लिम वोट को भी हाथ से नही जाने देना चाहती है। इसलिए भाजपा लगातार खुद सेक्यूलर दिखना चाह रही है। अब राजनाथ सिंह ने भी मुस्लिमों से माफी मागने की बात की है और राम मंदिर का मुद्दा लगातार धुधला होता जा रहा है, जिसके आसरे उसने 1998 में सत्ता का स्वाद चखा था। संघ के स्वयं सेवकों से बनी भाजपा संघ के पढाये पाठ से इतर नई कहानी लिख रही है और संघ भी हवा के रूख को देखकर चुप रहने में भलाई समझ रहा है, लेकिन सवाल यह भी है कि अगर भाजपा संघ से अलग विचारधारा की बात करती है तो बाबरी मस्जिद को तोड़कर मंदिर बनाने की बात कैसे कर सकती है, तो क्या अब भाजपा को अपनी गलती का एहसास हो चुका है? और वह सचमुच सेक्युलर हो चुकी है।      

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