प्रचार, विस्तार, और कार्यभार
मोदी कनाडा में अपनी सरकार की 10 महीनो की उपलब्धि का इतना ढोल क्यों बजा रहे हैं ? और कांग्रेस की खिचाई क्यों कर रहे हैं ? ऐसा 42 साल में पहली बार हुआ जब एक पीएम ने भारत में ही नही बल्कि विदेशों में बसे भारतीयों का इस्तेमाल कैसे किया जाये यह सिखाया। जो सिलसिला अब अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया से होता हुआ कनाडा तक जा पंहुचा है।
पीएम तो पहले भी विदेश दौरों पर जाते रहे हैं लेकिन मोदी इस तरह के रंगारंग समारोह करके अपने ही देश के इतिहास पर इतना पछतावा क्यों कर रहे हैं ? कि जैसे देश इन 10 महीनो में ही आज़ाद हुआ हो। ऐसा भी पहली बार हो रहा है जब भारत से बाहर देश के प्रधानमंत्री ने भारत के आजादी के बाद की उस विचारधारा को ही गलत बता दिया जिनकी आजतक सरकार रही, कांग्रेस को कहा गन्दगी करने वाले चले गए, ऐसा प्रधानमंत्री को विदेशियों के पास बोलने का क्या मतलब है, भले की भाजपा कांग्रेस विरोधी हो लेकिन अपने देश तक। प्रधानमंत्री तो पूरे देश का प्रतिनिधित्व करता है। मोदी अपने आप को भारत के आज़ादी के बाद के इतिहास से क्यों अलग रखना चाहते हैं, तो क्या मोदी कांग्रेस के इतिहास को अपना इतिहास नही मानते और इतिहास से लेकर वर्तमान तक संघ की लाइन खीचना चाहते हैं ? क्योंकि जो 42 साल में नही हुआ वह 10 महीने में हुआ इसका मतलब भी यही निकलता है। अब यह साफ़ है कि पीएम मोदी पीएम बनकर तीन काम एक साथ कर रहे हैं, दुनिया भर में पार्टी कर प्रचार, संघ की विचारधारा का विस्तार और पीएम का कार्यभार। ऐसा भी शायद 42 साल में पहली बार हुआ जब एक पीएम ने विदेश में पुरे देश का नही बल्कि एक पार्टी का प्रतिनिधित्व किया। किसी पीएम के लिए विदेशो में देश की नही बल्कि अपनी उपलब्धि 10 महीनो की उपलब्धि यह कह कर गिनानी पड़ जाये कि 42 साल में देश को लूटा गया और मैंने सब सही कर दिया तो बात सोचने पर मजबूर जरूर करती है। जैसे की मोदी की कनाडा यात्रा से पहले की कयास लगाये जा रहे थे कि वहां बड़ी मात्रा में पंजाब से जाकर लोग बसे हैं, जिनके पास भारत में चुनाओ में मतदान करने का अधिकार भी है और पंजाब में चुनाव भी नजदीक हैं ऐसे में पीएम मोदी जो कर रहे हैं उसको समझा जा सकता है। लेकिन सवाल यह भी है कि क्या एक प्रधानमंत्री के लिए सरकारी खर्चे से विदेश यात्रा करना और किसी एक पार्टी का प्रचार करना उचित है। पीएम बनने के बाद अगर मोदी की तमाम विदेश दौरों पर नजर डालें तो उनकी चर्चा सामरिक समझौतों से ज्यादा मनोरंजन या प्रचार प्रसार के रूप में किया गया तो क्या मोदी पीएम बनकर पार्टी और संघ के एजेंडे को पहले और देश एजेंडे उसके बाद रखना चाहते हैं। क्योंकि वाक़ई जिन 42 सालों में कुछ नही हुआ यह भारत के किसी पीएम का बयान नही हो सकता, इस शब्द के पीछे एक स्वार्थ है जो किसी पार्टी का नेता या किसी विशेष विचारधारा का स्वयंसेवक ही बोल सकता है वो भी किसी दूसरे देश में जाकर। प्रवासियों से इतना प्यार क्यों शायद चुनाव आने वाले हैं। मोदी सालों पूर्व एयर इंडिया विमान हादसे में मरे प्रवासी भारतीय मृतकों के पास तो जाते है लेकिन, देशभर में मरते किसानों, और छत्तीसगढ़ में नक्सलियों के हाथों मरे जवानों के परिजनों से मिलने का वक़्त न मोदी को है, न मीडिया को प्रेस्टीटूट कहने वाले वी. के सिंह के पास।