मेरी ब्लॉग सूची

शनिवार, 16 नवंबर 2013

कई सचिन पैदा कर गए सचिन

24 बरस पहले 15 नवंबर 1989 को जब कराची में सचिन ने  पाकिस्तान के खिलाफ टेस्ट मैच से टेस्ट कैरियर  की शुरुआत की  तब शायद ही किसी ने सोचा होगा कि ये छोटे कद का खिलाड़ी क्रिकेट के एक युग का परिचायक बनेगा। 14 नवंबर 2013 को अपने घरेलू मैदान वानखेडे में वेस्टइंडीज के खिलाफ अपना 200वां टेस्ट खेलकर क्रिकेट को अलविदा कह दिया।  सचिन के सन्यास के बाद मानो क्रिकेट का एक युग के खत्म होने जैसा है, क्रिकेट जब तक रहेगा शायद तब-तब हर-एक के जेहन में एक नाम याद  आएगा " सचिन रमेश तेंदुलकर "।

 आने वाली पीढ़ी जब पीछे मुड़कर देखेगी तो वो जरूर सोचेगी ये सचिन कैसे खेलता होगा। जिसके नाम दुनिया भर के रिकॉर्ड कायम हैं। 15,921 टेस्ट रन,  18,426 एकदिवसीय रन, 51 टेस्ट सतक, 49 एकदिवसीय सतक, कुल मिलकर 100 सैकड़े, एकदिवसीय में पहला दोहरा सतक बनाने वाला खिलाडी, लेकिन जिन्होंने सचिन को खेलते देखा है वो अपनी इस उपलब्धि से गदगद होंगे कि हमने तो सचिन को खेलते हुए देखा है। ये ढाई दसक इतिहास को सुनहरा बना चुके हैं, या यूँ  कहें कि सचिन का मतलब है क्रिकेट और क्रिकेट का सचिन,  मात्र सात बरस कि उम्र में बल्ला थामा  और तब से सिर्फ क्रिकेट ही खेला  और क्रिकेट ही सोचा,  अब जब 24 बरस बाद सचिन क्रिकेट को अलविदा कह रहे सचिन तो सबके मन में  एक सवाल उठना लाजमी है कि अब सचिन क्रिकेट से दूर कैसे रह पाएंगे?  सचिन नाम सिर्फ एक खिलाड़ी का नाम नहीं बल्कि एक नाम समर्पण की मिशाल का  भी है, जिसने अपने समर्पण से अपने हुनर को इस बुलंदी तक पहुंचाया कि पूरी दुनिया इस लिटिल मास्टर का लोहा मानने  को मजबूर हो गयी, अगर अगर बीते 24 बरस की  बात करें तो देश में बहुत कुछ बदला, देश ने कई प्रधानमंत्री देखे, क्रिकेट में मैच फिक्सिंग जैसी घटनाएं हुई, कई घोटाले हुए, दुनिया के सबसे बड़े लोकतान्त्रिक देश के सियासतदानो और व्यवस्था से जनता का विश्वास उठा,  लोग सड़कों  पर उतरे, लेकिन इन सबसे से इतर 24 बरस में एक सख्स ऐसा भी था जो हमेशा अपने कर्त्तव्य पर अडिग रहा। जब सीमा पर भारतीय सैनिक युद्ध में अपनी जान  गवां रहे थे तब सचिन लगातार पाकिस्तानी गेंदबाजों के छक्के छुड़ा रहे थे, इमरान खान, वकार यूनिस वसीम अकरम, जैसे गेंदबाजो को सबक सिखा रहे थे।
 अगर आज भारत क्रिकेट में दुनिया में आज नंबर है तो इसमें सचिन तेंदुलकर का महत्व पूर्ण योगदान है। आज अगर भारत में महेंद्र सिंह धोनी, युवराज, विराट कोहली, रोहित शर्मा जैसे खिलाडी है तो इन सबका प्रेरणाश्रोत सचिन ही हैं  जो 16 साल कि उम्र से लगातार देश के इन युवाओ को सर्वश्रेष्ठ  और तकनीक से भरपूर क्रिकेट कवर ड्राइव, स्ट्रैट ड्राइव, पुल, हुक, जैसे शॉर्ट दिखाते रहे। जब मुम्बई के वानखेड़े में अपनी अंतिम पारी सचिन खेल रहे थे तो ऐसा लग रहा था कि मानो  सचिन क्रिकेट प्रेमियों  आज भी  वही सर्वश्रेष्ठ  क्रिकेट स्ट्रोक दिखाना चाहते हो, शॉट खेलने में वही तत्परता, क्रिकेट में पूरी तरह डूबे हुए, गेंदबाज के हाथ से लेकर बाउंड्री के पार जाने  तक गेंद पर पूरी निगाह, जबकि क्रिकेट के इस भगवान् की अंतिम पारी का साक्षी बनने के लिए दुनिया भर की मीडिया का जमावड़ा था। उनके गुरु रमाकांत आचरेकर, उनकी माँ, बीवी बच्चे,  फिल्मी सितारों से लेकर, सियासत के खिलाडी तक मौजूद थे, और ऐसे में उनके खेल की एकाग्रता पर असर पड़ना लाज़मी है, लेकिन सचिन के खेल में ऐसा कुछ लगा नहीं, वो तो बस गेंदो से मुक़ाबला  करने में मगशूल थे।
 अपनी अंतिम पारी के बाद सचिन ने जो कहा वो सुनकर लाखों लोगों के आँखों में आंसू थे कि अब सचिन मैदान पर नहीं दिखेंगे। ये एक महान खिलाडी के ही गुण है कि, इतना बड़ा खिलाडी होने के बाद भी, एक पति, शिष्य, बेटा, भाई की  भूमिका भी वो सहजता से निभाते रहे, भारत रत्न किसी खिलाड़ी को मिले यह चर्चा भी शायद सचिन जैसे खिलाड़ी के कारण ही सम्भव हो पाया, सचिन जैसा खिलाडी सदी में सिर्फ एक ही बार पैदा होता है। इन 24 बरस में सचिन ने अपने सर्वश्रेष्ठ खेल से देश ही नहीं पूरी दुनिया को कई सचिन दिए हैं। पूरे अंतराष्ट्रीय क्रिकेट में कई खिलाड़ी आये, शायद ही 90 के दसक के बाद का कोई ऐसा गेंदबाज हो जिसको सचिन ने न खेला हो, भारतीय टीम में ही कई ऐसे खिलाड़ी है हैं जिनकी पैदाइस सचिन के क्रिकेट करिएर से छोटी है।  अब आने वाली पीढ़ी में शायद ही कोई ऐसा खिलाड़ी होगा जो 24 बरस तक देश के लिए  क्रिकेट खेलता रहेगा।

कोई टिप्पणी नहीं: