"जब ज़ीरो दिया मेरे भारत ने.....देता न दशमलव भारत तो चाँद पे जाना मुश्किल था , धरती और चांद की दूरी का अंदाज़ा लगाना मुश्किल था .......भगवान करे यह आगे बढे आगे बढे बढ़ता ही रहे
24 सितम्बर 2014 को सुबह 7 बज कर 17 मिनट पर पीएसऍलवी सी-25 के जैसे ही मंगल की कक्षा में स्थापित होने के सिग्नल श्रीहरिकोटा के सतीश भवन में व्याकुलता से बैठे वैज्ञानिकों तक पहुंचे तो भवन तालियों की गड़गड़ाहट से गूँज उठा। भारत ने एक ऐसी उपलब्धि हासिल कर ली जो दुनिया के कई विकसित देश तक नहीं कर पाये। भारत दुनिया का ऐसा पहला देश बन गया जिसने अपने पहले ही प्रयास में मंगल पर अपना डेरा जमा लिया। और एशिया का ऐसा पहला देश जो मंगल पर पंहुचा है। इससे पहले चीन, जापान भी प्रयास कर चुके हैं लेकिन असफल रहे। एक सबसे महत्वपूर्ण बात यह भी है कि इस मंगल मिशन में भारत ने मात्र 450 करोड़ (करीब 6 करोड़ 90 लाख डॉलर) रूपये खर्च करके कामयाबी हासिल की है इतनी रकम तो एक हॉलीवुड की फिल्म बनाने में ही खर्च हो जाते हैं।
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मंगल पर भारत के कदम
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वैसे तो भारतीय वैज्ञानिको ने ज़ीरो, दशमलव,जैसे दुनिया को कई अविष्कारों से रूबरू करवाया है लेकिन यह कामयाबी इसलिए खास है क्योंकि पृथ्वी के साथ - साथ ऐसे कई ग्रह हैं जिनके बारे में जानने का प्रयास दुनिया भर के वैज्ञानिक कई वर्षो से कर रहे हैं कि क्या इन ग्रहो में भी पृथ्वी जैसा जीवन है ? क्या इन ग्रहों में भी मनुष्य की तरह कोई प्राणी होगा ? इन ग्रहों के अंदर की दुनिया के बारे में जानने की उत्सुकता तब और भी बढ़ जाती है जब फिल्मो के जरिये ऐसे कई वैज्ञानिक रहष्यों का ज़िक्र किया जाता जाता जिसमे उड़नतस्तरी या दुसरे ग्रह के प्राणियों का पृथ्वी पर आना होता है। यह जानने की उत्सुकता बढ़ जाती है कि क्या हम कभी इन दूसरी दुनिया के प्राणियों से कम्युनिकेट कर पाएंगे। काश ऐसा हो पाता जब हम दूसरे ग्रहो के निवासियों से रूबरू हो पाते, कि क्या उन ग्रहो की दुनिया में भी फिल्मे बनती होगी। क्या उन ग्रहों में कोई क्रिकेट जैसा खेल खेला जाता होगा। क्या वहां भी नेता के घोटाले होते होंगे। क्या वो भी मोबाइल या कंप्यूटर जैसी किसी तकनीक का इस्तेमाल करते होंगे।
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पीएसऍलवी सी-25 मंगल की कक्षा में
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क्या उन ग्रहो के लोग भी पृथ्वी और हमारे बारे में जानने के उत्सुक होंगे। आप को यह बता दें कि पृथ्वी 30 किमी प्रति सेकंड और मंगल 24 किमी प्रति सेकंड की रफ्तार से दौड़ रहा था। आप जानते हैं कि जिन कक्षाओं (आर्बिट्स) में दोनों ग्रह सूरज की परिक्रमा कर रहे हैं, वे आपस में पास-पास हैं। पृथ्वी की कक्षा अंदर पड़ती है, मंगल की बाहर। हरेक 780 दिनों के बाद पृथ्वी मंगल को ओवरटेक करती है। पृथ्वी से चलकर मंगल के निकट पहुंचने वाले किसी यान के पास चार विकल्प होते हैं। एक, वह मंगल के पास से होता हुआ निकल जाए और अंतरिक्ष में भटक जाए। दो, वह अपनी स्पीड को इतना कम कर ले कि मंगल की ग्रैविटी उसे पकड़ ले और वह मंगल के गिर्द घूमने लगे। तीन, वह मंगल से टकरा कर उस पर क्रैश लैंड कर जाए। चार, टकराने से पहले उल्टी दिशा में जोर लगा कर वह मंगल की सतह पर सॉफ्ट लैंड कर जाए। इसरो ने अपने मंगलयान के लिए नंबर दो वाले विकल्प को चुना है। यानी, मंगलयान मंगल पर उतरेगा नहीं, केवल मंगल के आसमान में एक नकली चांद बन कर उसकी परिक्रमा करने लगेगा और कई महीनों के लिए उस दुनिया में तांक-झांक करता रहेगा।
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