31 अक्टूबर 1984 सुबह 9:20 मिनट प्रधानमन्त्री इंदिरा गांधी को उनके दो सिख सुरक्षा गार्डो ने उनके सफ्तरजंग स्थित आवास पर गोली मर दी। जिसके तुरंत बाद उन्हें एम्स में ले जाया गया। सुबह 10:50 मिनट पर डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया। सुबह 11 बजे आल इंडिया रेडियो से खबर पूरे देश में आग की तरह फ़ैल गयी, राजीव गांधी उस वक़्त पश्चिम बंगाल में थे और शाम के 4 बजे वे भी दिल्ली पहुचे, राष्ट्रपति ज्ञानी जैलसिंह सहित कई लोग वहां पहुचे। इन सब घटनाओं के फलस्वरूप 3 नवम्बर तक देश भर में सिख विरोधी दंगे होते रहे जिनमे देश भर में 8000 के करीब सिखों को दंगाईयो ने मार दिया, सिर्फ दिल्ली में 3000 सिखों की हत्याए हुई। जिसमे जिन्दा जलाना, लूटपाट, और बलात्कार जैसी घटनाये शामिल थी, इस दंगे को सिख नरसंहार के रूप में भी जाना गया, इन् दंगो को भड़काने में कांग्रेस के कई बड़े नेताओं के नाम आये जिनमे सज्जन कुमार, जगदीश टाइटलर, जैसे नाम शामिल थे, लेकिन जब देश में 1984 के लोकसभा चुनाव हुए तो उसने देश की जनता ने इंदिरा गांधी को कांग्रेस पार्टी को 515 में से 404 सीटें जीता कर इंदिरा गांधी को याद किया, हालाँकि उस दौर में तेलगुदेशम पार्टी को भी 30 सीटें मिली और वो दुसरे स्थान पर रही।
अब आपको याद दिलाना चाहता हूँ 2002 हुए दंगो की जिनको मुश्लिम की हत्याओं के रूप में जाना गया। 2002 की गुजरात हिंसा भारत के गुजरात राज्य में फरवरी और मार्च 2002 में होने वाले सांप्रदायिक हत्याकांड तब शुरू हुआ जब 27 फरवरी 2002 को गोधरा स्टेशन पर साबरमती ट्रेन में आग से अयोध्या से लौट रहे हिन्दुत्व से जुड़े 59 हिंदु मारे गए यह घटना स्टेशन पर किसी मुसलमान रहने वाले के साथ कारसेवकों के झगड़े के बाद घटी बताई जाती है। कहा जाता है कि मुसलमान एक ग्रुप ने ट्रेन के विषेश डिब्बे को निशाना बनाकर आग लगाई। यह गुजरात में मुसलमानों के खिलाफ एकतरफा हिंसा का माहौल बन गया। इसमें लगभग 790 मुसलमानों एवं 254 हिन्दुओं की बेरहमी से हत्या की गई या जिंदा जला दिया गया। उस दौर में गुजरात की सत्ता भाजपा के हाथ में थी और नरेन्द्र मोदी मुख्यमंत्री, और केंद्र में भी भाजपा की ही सरकार थी अटल बिहारी वाजपेयी प्रधान मंत्री थे। मोदी को इन दंगो के लिए जिम्मेदार उनके विरोधियों ने ठहराया और माया कोडनानी और अन्य लोगो पर मुक़दमे भी चले। लेकिन 2007 में गुजरात में जब फिर विधान सभा चुनाव हुए तो मोदी को ही वहाँ की जनता ने गुजरात की गद्दी थम दी, तो समझिये की इस देश में दंगो का मतलब आखिर होता क्या है।
बात 1984 दिल्ली सिख के दंगो की हो, 2002 के गुजरात दंगो की हो या फिर 2013 में मुजफ्फर नगर के दंगो की हो, इस सबको लेकर एक ही बात कही गयी इतने सिख मारे गए, इतने मुस्लिम मारे गए या इतने हिन्दू मारे गए, लेकिन किसी ने ये नहीं कहा की इतने भारतीय नागरिक मारे गए। क्योंकि साम्प्रदायिकता ही इस देश में लोकतंत्र का मतलब हो चूका है, या ये कहे की इस धर्मनिरपेक्ष देश में नेता अलग -अलग धर्मो के लोगो लो लडवा कर गद्दी पाने का हथियार बनाते हैं। जैसे गुजरात 2002 के दंगो को कोंग्रेस आज भी अपना चुनावी हथियार बना रही है और भाजपा 1984 के सिख दंगो को, और इस देश में दंगो के बाद हुए चनावो का इतिहास भी यही बताता है की जिनपर दंगे करवाने के आरोप लगे उन्ही को जनता ने गद्दी दी, बात 1984 की हो या 2002 की, हालही में मुजफ्फरनगर में हुए दंगो को अपना चुनावी हथियार बनाने में लगी है।
दरअसल देश का नेतृत्व करने वाले नेताओं की पहचान सेक्युलर होने के बजाय कम्युनल होती जा रही है। बात भाजपा के पीएम् पद उम्मीदवार मोदी की करे तो उन पर विपक्षी पार्टियां मुश्लिम विरोधी होने का आरोप लगाती रही है, और मोदी भी अपनी इस मुश्लिम विरोधी छवि को मिटाने की कोशिश करते है, लेकिन वे कभी मुश्लिमो का विश्वास जीत नहीं पाये, कुछ समय पूर्व मोदी ने एक मुश्लिम संगठन से पुछा था की मुश्लिमो का विश्वास कैसे जीता जा सकता है, और उनका जवाब सीधा था की 2002 के दंगो के लिए माफ़ी मांगे चूंकि आप उस राज्य के मुख्यमंत्री उस दौर में थे। हालांकि अब भाजपा माफ़ी मांगने का यह उपदेश मुज़फ्फरनगर दंगो के बाद मुलायम सिंह को देने लगी है। लेकिन दूसरा सच यह भी है की हिन्दुत्व भाजपा का मूल वोटबैंक है, और इस देश में ज्यादा वोट भी हिन्दुओ के ही हैं, तो मोदी माघ्ी क्यों मांगें? भाजपा हिन्दुत्व विचारधारा से निकली पार्टी है, इसलिए हिंदुओ को कभी नाराज नही कर सकती, जब भी चुनाव आते हैं राम मंदिर का जिन्न बाहर आ जाता है, भले ही भाजपा राम मंदिर के निर्माण को अपना चुनावी एजेंडा कहने से इंकार करती रही हो लेकिन हिडन ही सही यह मुद्दा भाजपा का सबसे बड़ा हथियार तो है ही, और भाजपा इस अजेंडे को चुनावी मौसम में विहिप जैसे अपने संगठन से करवाती है, और विहिप की 84 कोसी यात्रा शुरू हो जाती है,
क्या इस देश में कोई ऐसा नेता है जो एक मंच से पूरे देश को एक साथ यानि किसी धर्म का नाम लिए बिना सम्बोधित कर सके? शायद नहीं! दूसरी तरफ सत्ताधारी पार्टी कांग्रेस भी खुद को हमेशा सेक्युलर कहती आयी है, लेकिन साम्प्रदायिकता से इस पार्टी की भी बड़ी दोस्ती है, गांधी और परिवार वाद के नाम से हिन्दू वोट कांग्रेस को मिलते आये है लेकिन मुसलमानो को लेकर कांग्रेस सांप्रदायिक लगने लगती है। गांधी से गोधरा हत्याकांड़ का जिम्मेदार भाजपा को बता डालती है। तक देश में सबसे ज्याद समय तक राज करने वाली कांग्रेस की सरकार ने मौजूदा दौर में देश में महगाई और भ्रष्टाचार की स्थितियों को पैदा किया है, इसलिए कांग्रेस का चुनावी एजेंडा विकास न रेह्कर परिवारवाद और हिन्दू मुस्लिम वाला ही नजर आता है। इसका उदाहरण मात्र है कांग्रेस पार्टी के युवराज और पीएम उम्मीद वार राहुल गांधी का ताघ चुनावी भाषण जिसमे उन्होंने कहा की जिन लोगो ने मेरे पापा और दादी को मारा वो मुझे भी मार डालेंगे। इसलिए मैं डरता हूँ, लेकिन इस देश की सच्चाई यह है भी या नहीं की आखिर इस देश में डरता कौन है? नेता या दंगो के शिकार हघरो लोगो के परिवार? जिनके घरो में एक साथ कई लोगो की जान चली जाती है, या वो नेता जो इन दंगो को अपनी चुनावी रोटी समझते है, अब तय इस देश की जनता को करना है की उनका भविष्य कैसे सुरक्षित हो सकता है,
अब आपको याद दिलाना चाहता हूँ 2002 हुए दंगो की जिनको मुश्लिम की हत्याओं के रूप में जाना गया। 2002 की गुजरात हिंसा भारत के गुजरात राज्य में फरवरी और मार्च 2002 में होने वाले सांप्रदायिक हत्याकांड तब शुरू हुआ जब 27 फरवरी 2002 को गोधरा स्टेशन पर साबरमती ट्रेन में आग से अयोध्या से लौट रहे हिन्दुत्व से जुड़े 59 हिंदु मारे गए यह घटना स्टेशन पर किसी मुसलमान रहने वाले के साथ कारसेवकों के झगड़े के बाद घटी बताई जाती है। कहा जाता है कि मुसलमान एक ग्रुप ने ट्रेन के विषेश डिब्बे को निशाना बनाकर आग लगाई। यह गुजरात में मुसलमानों के खिलाफ एकतरफा हिंसा का माहौल बन गया। इसमें लगभग 790 मुसलमानों एवं 254 हिन्दुओं की बेरहमी से हत्या की गई या जिंदा जला दिया गया। उस दौर में गुजरात की सत्ता भाजपा के हाथ में थी और नरेन्द्र मोदी मुख्यमंत्री, और केंद्र में भी भाजपा की ही सरकार थी अटल बिहारी वाजपेयी प्रधान मंत्री थे। मोदी को इन दंगो के लिए जिम्मेदार उनके विरोधियों ने ठहराया और माया कोडनानी और अन्य लोगो पर मुक़दमे भी चले। लेकिन 2007 में गुजरात में जब फिर विधान सभा चुनाव हुए तो मोदी को ही वहाँ की जनता ने गुजरात की गद्दी थम दी, तो समझिये की इस देश में दंगो का मतलब आखिर होता क्या है।
बात 1984 दिल्ली सिख के दंगो की हो, 2002 के गुजरात दंगो की हो या फिर 2013 में मुजफ्फर नगर के दंगो की हो, इस सबको लेकर एक ही बात कही गयी इतने सिख मारे गए, इतने मुस्लिम मारे गए या इतने हिन्दू मारे गए, लेकिन किसी ने ये नहीं कहा की इतने भारतीय नागरिक मारे गए। क्योंकि साम्प्रदायिकता ही इस देश में लोकतंत्र का मतलब हो चूका है, या ये कहे की इस धर्मनिरपेक्ष देश में नेता अलग -अलग धर्मो के लोगो लो लडवा कर गद्दी पाने का हथियार बनाते हैं। जैसे गुजरात 2002 के दंगो को कोंग्रेस आज भी अपना चुनावी हथियार बना रही है और भाजपा 1984 के सिख दंगो को, और इस देश में दंगो के बाद हुए चनावो का इतिहास भी यही बताता है की जिनपर दंगे करवाने के आरोप लगे उन्ही को जनता ने गद्दी दी, बात 1984 की हो या 2002 की, हालही में मुजफ्फरनगर में हुए दंगो को अपना चुनावी हथियार बनाने में लगी है।
दरअसल देश का नेतृत्व करने वाले नेताओं की पहचान सेक्युलर होने के बजाय कम्युनल होती जा रही है। बात भाजपा के पीएम् पद उम्मीदवार मोदी की करे तो उन पर विपक्षी पार्टियां मुश्लिम विरोधी होने का आरोप लगाती रही है, और मोदी भी अपनी इस मुश्लिम विरोधी छवि को मिटाने की कोशिश करते है, लेकिन वे कभी मुश्लिमो का विश्वास जीत नहीं पाये, कुछ समय पूर्व मोदी ने एक मुश्लिम संगठन से पुछा था की मुश्लिमो का विश्वास कैसे जीता जा सकता है, और उनका जवाब सीधा था की 2002 के दंगो के लिए माफ़ी मांगे चूंकि आप उस राज्य के मुख्यमंत्री उस दौर में थे। हालांकि अब भाजपा माफ़ी मांगने का यह उपदेश मुज़फ्फरनगर दंगो के बाद मुलायम सिंह को देने लगी है। लेकिन दूसरा सच यह भी है की हिन्दुत्व भाजपा का मूल वोटबैंक है, और इस देश में ज्यादा वोट भी हिन्दुओ के ही हैं, तो मोदी माघ्ी क्यों मांगें? भाजपा हिन्दुत्व विचारधारा से निकली पार्टी है, इसलिए हिंदुओ को कभी नाराज नही कर सकती, जब भी चुनाव आते हैं राम मंदिर का जिन्न बाहर आ जाता है, भले ही भाजपा राम मंदिर के निर्माण को अपना चुनावी एजेंडा कहने से इंकार करती रही हो लेकिन हिडन ही सही यह मुद्दा भाजपा का सबसे बड़ा हथियार तो है ही, और भाजपा इस अजेंडे को चुनावी मौसम में विहिप जैसे अपने संगठन से करवाती है, और विहिप की 84 कोसी यात्रा शुरू हो जाती है,
क्या इस देश में कोई ऐसा नेता है जो एक मंच से पूरे देश को एक साथ यानि किसी धर्म का नाम लिए बिना सम्बोधित कर सके? शायद नहीं! दूसरी तरफ सत्ताधारी पार्टी कांग्रेस भी खुद को हमेशा सेक्युलर कहती आयी है, लेकिन साम्प्रदायिकता से इस पार्टी की भी बड़ी दोस्ती है, गांधी और परिवार वाद के नाम से हिन्दू वोट कांग्रेस को मिलते आये है लेकिन मुसलमानो को लेकर कांग्रेस सांप्रदायिक लगने लगती है। गांधी से गोधरा हत्याकांड़ का जिम्मेदार भाजपा को बता डालती है। तक देश में सबसे ज्याद समय तक राज करने वाली कांग्रेस की सरकार ने मौजूदा दौर में देश में महगाई और भ्रष्टाचार की स्थितियों को पैदा किया है, इसलिए कांग्रेस का चुनावी एजेंडा विकास न रेह्कर परिवारवाद और हिन्दू मुस्लिम वाला ही नजर आता है। इसका उदाहरण मात्र है कांग्रेस पार्टी के युवराज और पीएम उम्मीद वार राहुल गांधी का ताघ चुनावी भाषण जिसमे उन्होंने कहा की जिन लोगो ने मेरे पापा और दादी को मारा वो मुझे भी मार डालेंगे। इसलिए मैं डरता हूँ, लेकिन इस देश की सच्चाई यह है भी या नहीं की आखिर इस देश में डरता कौन है? नेता या दंगो के शिकार हघरो लोगो के परिवार? जिनके घरो में एक साथ कई लोगो की जान चली जाती है, या वो नेता जो इन दंगो को अपनी चुनावी रोटी समझते है, अब तय इस देश की जनता को करना है की उनका भविष्य कैसे सुरक्षित हो सकता है,
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