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शुक्रवार, 25 अक्टूबर 2013

पत्रकारों की एक नई जमात विलुप्ति की कगार पर


कृपया पत्रकारिता को ग्लेमर समझने की भूल ना करें। दरअसल टेलीविजन के इस दौर में जिस तरह से पत्रकार बनने का चलन शुरू हुआ है उसमे हर कोई पत्रकार बनता जा रहा है। मैने तो सुना था कि पत्रकार और कलाकार किसी फैक्टी में नही बनाये जाते लेकिन जिस तरह एक दिन से लेकर साल तक पत्रकार बनाने की गारंटी दी जा रही है वह सच में लोकतंत्र के इस चैथे खंभे जर्जर बनाता जा रहा है।
आदरणीय राजेन्द्र माथुर कहते थे कि जो नेता कहे वो सूचना है.. जो कैमरा दिखाये वो तकनीक  और जो इसके पाछे का सच दिखाये वो पत्रकार है तो क्या आज के दौर में क्या वो वक्त आ गया है जब सूचना और तकनीक ही पत्रकारिता का मापदण्ड़ रह गई है। और पत्रकार बनाने का ये कारोबार खुद शुरू किया है उन्ही मीडिया संस्थानों ने जो खुद को राष्ट्रीय मीडिया कहने से नही चूकते हैं। और उन्ही फैक्ट्रियों  से निकली ऐसी ही पैदावार लाकतंत्र के चैथे खंभे को खोखला करता जा रहा है..... जब से पत्रकारिता में टेलीविजन आ गया तब से खबरों की खरीद फरीख्त होने लगी है। जनता पत्रकारिता को एंटरटेनमेंट तथा पत्रकारों को एंटरटेनर समझने लगी  है। अर्थात पब्लिक परसैप्शन मीडिया अपनी विश्वसनीयता खोती जा रही है। इस मामले में टेलीविजन बहुत आगे निकल चुका है। में तो कहता हूं टीवी को जर्नलिज्म ना माना जाय इसे मात्रा चलचित्र दिखाने की मशीन माना जाए। जिस के दम पर ये छाया हुआ है। भले कागजी पत्रकारिता का भी कोई सुनहरी दौर नही है। समाज में अपराधी, और भ्रष्ट प्रवृत्ति के लोग कैसे हमारे लीड़र बन जा रहे हैं? कैसे चुनाव जीत जा रहे हैं ? क्या इसमे आज के दौर की जर्नलिज्म का फेल्योर नही हम उनका असली चेहरा समाज के सामने नही दिखा पा रहे हैं। हम उन्हें उनके असली रूप में प्रस्तुत नही कर पा रहे है। क्यों हम उन्हें टेलीविजन की उस चर्चा में बुलाकर सम्मान देते है जिसमें उन्ही के अपराधों और भ्रष्टाचारों पर चर्चा हो रही होती है। क्या इससे जनता इससे गुमराह नही होती। क्या मीडिया संस्थान अपनी इकनोमी  बनाने और कार्पोरेट के दबाव में अपनी लाकतांत्रिक जिम्मेदारी को भूलती जा रहे है । मेरे जहन में कई सवाल है जिनमें से कई सवाल यह लेख टाईप करते वक्त याद नही आ रहे क्योकि थोडी अनुभव लिखने का कम है। चुनने का तरीका तो इस देश में बद् से बदतर होता जा रहा है चाहे वो नौकरशाही हो, राजनीति हो या मीडिया,,,योग्य पत्रकारों को कोई नौकरी देना नही चाहता सभी अपनी लाइन डाईवर्ट कर रहे हैं मेरे अधिकतर दोस्त कर चुके हैं मैं ही किसी तरह टिका हुआ हूं। युवा पत्रकारों की एक नई जमात विलुप्ति की कगार पर है। क्या ये सरकार की जिम्मेदारी नही कि लोकतंत्र की मजबूती के लिए युवा एव योग्य पत्रकारों को प्रोत्साहन दे। जिससे उनकी रोजी रोटी भी चल सके । जिससे कि कार्पोरेट के चंगुल से मीडिया आजाद हो खुलकर अखबार सच छापे,, कोई खबर ना दबे। देश में कोई ऐसा अखबार नही जो जनमुखी पत्रकारिता कर रहा हो। खबरें एजेंसी और गूगल सर्च पर निर्भर है। ग्रांउड जीरो पर जाने जैसी तो कोई बात ही नही सारी जनकारी सूत्र ही देते हंै। ये तथाकथित पत्रकार मौसम की सूचना भी अपने सूत्रों से मांगते है। जैसे कि खबरों का अकाल पड गया हो पूरे दिन एक ही खबर, कार्पोरेट के इर्द -गिर्द सारी खबरें और इस सबके इतर सच यह भी है कि जैसे कि इस देश में किसी के साथ अन्याय ही ना हो रहा हो, कोई किसान आत्महत्या ही न कर रहा

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