मेरी ब्लॉग सूची

सोमवार, 2 मार्च 2015

पूंजीवाद की ओर इशारा करता मोदी बजट

इस बात में कोई राय नही कि बजट में सरकार ने पहले दो फिर लो की नीति अपनाई है क्योंकि यह आम आदमी को राहत देने से ज्यादा इकनोमिक रिफार्म की दिशा में बढ़ाया कदम लग रहा है। सरकार ने बड़ी मात्रा में निवेश को बढ़ावा देने की पूरी व्यवस्था इस बजट के जरिये की है बात चाहे विदेशी निवेश की हो या घरेलू निवेश की, जिसमें दो बिन्दु मुख्य हैं विदेशी निवेश के लिए नियमों को आसान बनाया गया है और कल्याणकारी योजनाओं को इनवेस्टमेंट के आसरे चलाया गया है। विदेशी निवेश को आसान बनाने के लिय सरकार ने जनरल एंटी अवोइडेन्स रूल्स (गार) को दो साल के लिए टाल दिया है।
कॉर्पोरेट टैक्स 30 प्रतिशत से 25 प्रतिशत कर दिया है। वही दूसरी ओर सर्विस टैक्स में 12-36 से 14 प्रतिशत की बढ़ोतरी की है और 2 प्रतिशत स्वच्छ भारत सेस लगाकर आम आदमी से भी पैसा उगाही का प्रबंध किया है। चूंकि पूरा बजट भारत में निवेश करने थीम पर आधारित है इसलिए अच्छे दिनों की आस फिलहाल दूर की लगती है। अब यह स्पष्ठ हो गया है कि आने वाले कुछ समय में मंहगाई का बढ़ना तय है। सरकार को पैसा चाहिए इसलिए इस सरकार ने आने के बाद जितनी भी कल्याणकारी योजनाएं चलाई है वो सारी निवेश करने पर आधारित हैं बात जनधन योजना की करें तो उससे भी सरकार को काफी पैसा मिला है और किसान विकास पत्र जो कि कांग्रेस सरकार ने बंद किया था वह भी सरकार ने चालू कर दिया है उससे भी पैसा आएगा। अब इस आम बजट में सरकार ने पेंसन योजना और हेल्थ इंश्योरेंस में इन्वेस्ट करने को बढ़ावा दिया है जिससे कि सरकार के पास रेवेन्यू ही आएगा। यानि एक तरफ समाज का कल्याण भी होगा और दूसरी तरफ सरकार की कमाई भी होगी। 
Make in india budget

चुनावों में इस सरकार का सबसे बड़ा मुद्दा ब्लैक मनी लाने का था उसके लिए सरकार ने विधेयक लाने की बात कही है सिसमें कि कडी सजा का प्रावधान होगा लेकिन निवेश के नियमों को जिसमें गार अहम है, को आसान बनाकर मनी लॉन्ड्रिंग का रास्ता खुला छोडा है। ऐसा ब्लैक मनी खाताधारक जिसके खाते में काला धन हो भारत में किसी विदेशी नागरिक से भारत में निवेश के जरिये अपना पैसा वापस ला सकता है। इसके अतिरिक्त मिनिमम अल्टरनेट टैक्स मेट को भी विदेशी निवेशकों के लिए हटा दिया गया है।
दुनिया में भारत के अस्पतालों की स्थिति यहाँ की जनसंख्या के लिहाज से निराशाजनक है लेकिन सरकार के इस बजट में आम आदमी के स्वास्थ्य की ज्यादा चिंता नही है सर्विस टैक्स बढने से दवाईयां और अस्पतालों में इलाज मंहगा हो जायेगा, कुछ AIMS अस्पतालों को खोलने की घोषणा जरूर की गई है लेकिन इसमें वक्त लगेगा। यानि स्वस्थ्य में हर गरीब को भी सरकारी सुविधा के नाम पर पहले अपना बीमा करवाना पड़ेगा फिर इलाज़ मिलेगा। एक अनुमान के मुताबिक दुनिया भर के देश अपनी जीडीपी का 10 प्रतिशत स्वास्थ्य में खर्च करते हैं और डब्लूएचओ की रिपोर्ट में कहा गया है कि किसी भी देश को अपनी जीडीपी का कम से कम 3 प्रतिशत स्वास्थ्य में खर्च करना चाहिए और भारत अभी भी अपनी जीडीपी का एक प्रतिशत ही स्वास्थ्य में खर्च कर रहा है। बजट में देश भर में पड़े तकरीबन 20,000 टन गोल्ड को इस्तेमाल में लाने का आईडिया अच्छा है इससे सबसे बडा लाभ गोल्ड के आयात और तस्करी रोकने में हो सकता क्योंकि भारत विदेशों से हर साल 800 सम 1000 टन गोल्ड आयात करता है जिसमें कमी लाने के लिए कस्टम ड्यूटी को 10 प्रतिशत कर दी गई थी लेकिन सरकार को इसका खामियाजा भुगतना पड़ा गोल्ड अन ऑफिसियल रास्ते से यानि तस्करी से आ रहा है 2014 की बात करें तो 200 टन गोल्ड तस्करी से आया। 
लेकिन सरकार के सामने सबसे बड़ी चुनौती लोगों के पास पड़े सोने को घरों से निकालने का हो होगा, क्या व्याज के लालच में लोग अपने घरों में पड़ा गोल्ड जमा करेंगे ?
अर्थशास्त्री इस बजट को एक नई अर्थव्यवस्था की नीव के रूप में भी देख रहे हैं क्योंकि मेक इन इंडिया के जरिये भारत के दरवाजे विदेशी बाजार के लिए खोल दिए गए हैं लेकिन इस तरह की अर्थव्यवस्था को खडा करने लिए भूमि अधिग्रहण जैसे कानून एक सामाजिक त्रासदी भी पैदा कर सकती है। बजट के बाद अरुण जेटली ने कहा कि उद्योगों से कमाएंगे तभी गरीबों के लिए कल्याणकारी स्कीम चला पाएंगे। जिसे कि एक संकेत भी मान सकते हैं कि आने वाले दिनों में पूंजीवादी अर्थव्यवस्था का बोलबाला होगा सीधे तौर पर कहें तो गरीब तबके को प्रोडक्टिव वे में लाने यानि उनके हाथों काम न देकर उस तबके को कल्याणकारी स्कीम के आसरे छोड़ने का प्रोविजन इस बजट में है।