देश का सबसे बड़ा राज्य उत्तरप्रदेश लोकसभा की 80 सीटें, हर कोई जानता है कि दिल्ली की सत्ता का रास्ता उत्तर प्रदेश से ही होकर जाता है। दरअसल 2014 के लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश पर हर कोई सिर्फ इसलिए भी टकटकी लगाए नहीं बैठा है क्योंकि, इस चुनाव में नायक तौर पर पेश किये जा रहे मोदी और केजरीवाल, उत्तर प्रदेश की ही जमीन से टकरा रहे हैं बल्कि इसलिए भी क्योंकि उत्तरप्रदेश की पूरी लड़ाई हिन्दू बनाम मुसलमान हो चुकी है और अब इस टकराव का ऐलान मुजफरनगर दंगो के परिणाम स्वरुप खुले तौर पर किया जा रहा है। देवबंद में जमीयत उलेमा-ए-हिंद के मुखिया मोहम्मद अरशद मदनी जिस बात का जिक्र कर गए कि भाजपा अगर सत्ता में आ गयी तो देश को बांट देगी इसलिए भाजपा को हराने के लिए गोलबंद हो जाओ।
सपा, बसपा, कांग्रेस को आगे बढ़ाओ लेकिन भाजपा और मोदी को रोको। उसका एक मतलब यह भी निकलता है कि उत्तर प्रदेश में मुस्लिम भाजपा के खिलाफ एकजुट हैं तो अन्य पार्टियों के हिन्दू वोटरों का धु्रवीकरण भी भाजपा में जमकर होगा। क्योंकि जब जब माइनाॅरिटी और मज्यूरिटी को बांटा गया है फायदा बहुसंख्यकों का ही हुआ है 2002 के बाद गुजरात इसका उदाहरण मान सकते हैं। इन सबके बावजूद उत्तरप्रदेश में अगर हिन्दू मुस्लिम समीकरण खुलकर सामने आते हैं तो जातीय समीकरण टूटेंगे अर्थात दलित, जाट. इत्यादि वोट भाजपा के ही मिलेंगे और भाजपा को उदितराज के जरिये भी दलित वोट मिल सकते है। इसका सीधा मतलब होगा भाजपा की जीत, लेकिन बनारस में जिस तरह मुरली मनोहर जोशी को हटाकर मोदी को लाया गया और लखनऊ में राजनाथ को, उससे भाजपा को पंडित वोटो के कटने का डर जरूर सता रहा होगा। बनारस में हिन्दू और मुसलमान वोटर बराबर हैं। कांग्रेस ने यहाँ कोई मजबूत उम्मीदवार खड़ा नहीं किया और यह भी कहा जा रहा है कि पिछली बार बसपा के टिकट पर चुनाव लडे़ मुख्तार अंसारी को इस बार यह कह कर मुसलमानो द्वारा किनारे किया जा रहा है कि सारे मुसलमान वोट मोदी को रोकने के लिए केजरीवाल के पक्ष में कर दिए जाएँ, और अगर ऐसा हुआ तो बनारस में मुकाबला दिलचस्प हो जाएगा।
दरअसल जिस तरह मुस्लिम धर्म गुरुओ खासतौर पर जामा मस्जिद इमाम बुखारी साहब द्वारा भाजपा को रोकने का ऐलान खुले तौर पर किया जा रहा है और अमित शाह भी जो भाषा बोल गए, संकेत यही है कि हिन्दू, मुसलमान की आर-पार की लड़ाई उत्तर प्रदेश के चुनाओ का राॅ-मटीरिअल बन चुकी है। भाजपा ने जिस तरह अपने मेनिफेस्तो में राममंदिर और गाय का जिक्र किया वह यही मान रही है कि नब्बे के दौर में जिस रामकार्ड ने सत्ता तक पहंुचाया वह आज भी सत्ता पाने का सबसे धारदार हथियार है इसलिए संयम से ही सही अपने मेनिफेस्तो में राम लिखना नहीं भूली ताकि हिन्दू वोट पोलोराइज हो सकें।
दरअसल मुजफ्फरनगर दंगों के बाद जो हालात राजनेताओ द्वारा पैदा किये गए उसने उत्तरप्रदेश में हिन्दू और मुसलमानो में असुरक्षा का भाव पैदा कर दिया है और वह यह मानने लगा है कि पहली बार गवर्नेंस से बड़ा मुद्दा उस सरकार को चुनने का हो गया है, जो उनकी हितैसी हो। जिस सरकार के शासन तले हिन्दू, मुसलमानो को न धमका सके और मुसलमान हिन्दुओ को. मुसलमान 2002 में गुजरात में हुए दंगो के बाद मोदी को खलनायक मानने लगे है इसलिए वह भाजपा को टक्कर दे रहे किसी भी पार्टी के उम्मीदवार का साथ दे सकता है।
सपा, बसपा, कांग्रेस को आगे बढ़ाओ लेकिन भाजपा और मोदी को रोको। उसका एक मतलब यह भी निकलता है कि उत्तर प्रदेश में मुस्लिम भाजपा के खिलाफ एकजुट हैं तो अन्य पार्टियों के हिन्दू वोटरों का धु्रवीकरण भी भाजपा में जमकर होगा। क्योंकि जब जब माइनाॅरिटी और मज्यूरिटी को बांटा गया है फायदा बहुसंख्यकों का ही हुआ है 2002 के बाद गुजरात इसका उदाहरण मान सकते हैं। इन सबके बावजूद उत्तरप्रदेश में अगर हिन्दू मुस्लिम समीकरण खुलकर सामने आते हैं तो जातीय समीकरण टूटेंगे अर्थात दलित, जाट. इत्यादि वोट भाजपा के ही मिलेंगे और भाजपा को उदितराज के जरिये भी दलित वोट मिल सकते है। इसका सीधा मतलब होगा भाजपा की जीत, लेकिन बनारस में जिस तरह मुरली मनोहर जोशी को हटाकर मोदी को लाया गया और लखनऊ में राजनाथ को, उससे भाजपा को पंडित वोटो के कटने का डर जरूर सता रहा होगा। बनारस में हिन्दू और मुसलमान वोटर बराबर हैं। कांग्रेस ने यहाँ कोई मजबूत उम्मीदवार खड़ा नहीं किया और यह भी कहा जा रहा है कि पिछली बार बसपा के टिकट पर चुनाव लडे़ मुख्तार अंसारी को इस बार यह कह कर मुसलमानो द्वारा किनारे किया जा रहा है कि सारे मुसलमान वोट मोदी को रोकने के लिए केजरीवाल के पक्ष में कर दिए जाएँ, और अगर ऐसा हुआ तो बनारस में मुकाबला दिलचस्प हो जाएगा।
दरअसल जिस तरह मुस्लिम धर्म गुरुओ खासतौर पर जामा मस्जिद इमाम बुखारी साहब द्वारा भाजपा को रोकने का ऐलान खुले तौर पर किया जा रहा है और अमित शाह भी जो भाषा बोल गए, संकेत यही है कि हिन्दू, मुसलमान की आर-पार की लड़ाई उत्तर प्रदेश के चुनाओ का राॅ-मटीरिअल बन चुकी है। भाजपा ने जिस तरह अपने मेनिफेस्तो में राममंदिर और गाय का जिक्र किया वह यही मान रही है कि नब्बे के दौर में जिस रामकार्ड ने सत्ता तक पहंुचाया वह आज भी सत्ता पाने का सबसे धारदार हथियार है इसलिए संयम से ही सही अपने मेनिफेस्तो में राम लिखना नहीं भूली ताकि हिन्दू वोट पोलोराइज हो सकें।
दरअसल मुजफ्फरनगर दंगों के बाद जो हालात राजनेताओ द्वारा पैदा किये गए उसने उत्तरप्रदेश में हिन्दू और मुसलमानो में असुरक्षा का भाव पैदा कर दिया है और वह यह मानने लगा है कि पहली बार गवर्नेंस से बड़ा मुद्दा उस सरकार को चुनने का हो गया है, जो उनकी हितैसी हो। जिस सरकार के शासन तले हिन्दू, मुसलमानो को न धमका सके और मुसलमान हिन्दुओ को. मुसलमान 2002 में गुजरात में हुए दंगो के बाद मोदी को खलनायक मानने लगे है इसलिए वह भाजपा को टक्कर दे रहे किसी भी पार्टी के उम्मीदवार का साथ दे सकता है।