पत्रकारिता हो वकालत हो या सोशल एक्टिविस्ट, इनकी साख इस दौर में धूमिल होती जा रही है। इनकी साख को वही लोग सबसे ज्यादा चोट पंहुचा रहे हैं जिन पर एक उदार लोकतंत्र बनाये रखने की जिम्मेदारी है। इनको लेकर एक मात्र यही परसेप्शन बनता जा रहा है कि यह मात्र अधिक पैसे कमाने का जरिया है। इनको इनकी मूल भावना से ही दूर किये जाने का प्रयास इस दौर में लगातार किया जा रहा है। क्योंकि अगर ये अपना काम अपनी मूल भावना में रहकर करे तो सत्ता की हनक में मदहोश राजनेता इनसे तिल्मिलाएंगे ही। चाहे प्रधानमंत्री मोदी हो या केजरीवाल जब -जब जिन पत्रकारों ने इनके काम काज या इनको कटघरे में खड़ा किया उनको ये बिकाऊ या न्यूज़ ट्रैडर्स कहने से नही चुके। लेकिन जब मोदी सरकार के एक साल पूरे होने पर जेटली ने उन पत्रकारों को कॉकटेल पार्टी में बुलाया तो खुद प्रधान मंत्री मोदी इनको शाबासी देने के लिए पहुंचे तो वही वही न्यूज़ ट्रेडर झटके में पत्रकार कैसे बन गए। यानि यही निरंकुशता कहलाती है जो अपनी मर्जी का नही वह असत्य है।
हालही में प्रधानमंत्री ने जजों के एक समारोह में उन सामाजिक कार्यकर्ताओं पर ही सवाल उठा दिए जो सरकार की निरंकुशता और इनकी सत्ता की हनक में टांग अड़ाते हैं। लेकिन अगर हिट एंड रन केस में आभा सिंह जैसी वकील याचिका डालकर इतनी मेहनत न करती तो सायद की आज इस केस के पीड़ितों को न्याय मिलने की उम्मीद रहती और न ही न्यायपालिका को लेकर लोगों का भरोषा इतना बढ़ता।
उदार लोकतंत्र के रूप में इंडिया की साख को चोट लग रही है। जिस तरह ने कुछ समय से एनजीओ और मीडिया को नियंत्रित करने की कोशिश की है वह लोकतंत्र के लिए अच्छा नही है। एनजीओ पर राष्ट्र विरोधी हरकतों का आरोप लगाना दुनियाभर में निरंकुश सरकारों की हरकतों में शामिल रहा है। वहीं, धार्मिक अल्पसंख्यकों को निशाने पर लेने की घटनाओं के बारे में ताकतवर पीएम की चुप्पी से देश-विदेश में अच्छा संकेत नहीं गया है। यही वह पहलू है, जहां मोदी शासन से सबसे बड़ा फर्क पड़ा है। दुनिया में कोई पूर्ण लोकतांत्रिक देश नहीं है, लेकिन कुछ और लोकतांत्रिक होने की कोशिश करना अच्छा माना जाता है। मोदी की लीडरशिप में भारत के पीछे लौटने का खतरा दिख रहा है। भारत में कई गैर सरकारी संगठनों (एनजीओ) के खिलाफ सरकार की कार्रवाई पर अमेरिका ने भी चिंता जाहिर की है।
अमेरिका के भारत में राजदूत रिचर्ड वर्मा ने एक कार्यक्रम में कहा कि बदलाव के लिए शांतिपूर्वक काम करने वाले लोग सरकार विरोधी नहीं होते और देश की सुरक्षा को कमजोर नहीं करते, बल्कि वे बेहतरी की चाहत में सुरक्षा को मजबूत ही करते हैं। वर्मा ने कहा कि हाल की कुछ मीडिया रिपोर्टों पर उन्हें चिंता हुई है कि भारत में काम कर रहे कई गैर सरकारी संगठनों को चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। गौरतलब है कि मोदी सरकार ने अमेरिका के फोर्ड फाउंडेशन द्वारा भारत की कई एजेंसियों को मदद दिए जाने पर ऐतराज किया है और उसे निगरानी सूची में रख दिया है।
ग्रीनपीस इंडिया जैसे संगठनों को विदेशी मदद पर रोक भी लगाई है। सरकार ने विदेशी मदद पाने वाले 9,000 एनजीओ के लाइसेंस इस आधार पर रद्द कर दिए हैं कि इन संगठनों ने विदेशी सहायता कानून का उल्लंघन किया है लोकतंत्र चुनाओ से कहीं बढ़कर है मुक्त समाज को लगातार आप लोगों से जुड़े विषयों पर बहस और विचार करना चाहिए। राजनीतिक फायदे की आड़ में हम सख्त सवालों से नही बच सकते हम केवल इसलिए बहस से नहीं बच सकते क्योंकि हमें जवाब पसंद नही हैं .. चाहे वो कानून या पॉलिसीज को बदलने की बात हो या फिर उन्हें चुनौती देने का मामला हो जो शांतिपूर्वक बदलाव लाने में जुटे हैं वे सरकार के खिलाफ नही हैं।
![]() |
Liberal democracy |
हालही में प्रधानमंत्री ने जजों के एक समारोह में उन सामाजिक कार्यकर्ताओं पर ही सवाल उठा दिए जो सरकार की निरंकुशता और इनकी सत्ता की हनक में टांग अड़ाते हैं। लेकिन अगर हिट एंड रन केस में आभा सिंह जैसी वकील याचिका डालकर इतनी मेहनत न करती तो सायद की आज इस केस के पीड़ितों को न्याय मिलने की उम्मीद रहती और न ही न्यायपालिका को लेकर लोगों का भरोषा इतना बढ़ता।
उदार लोकतंत्र के रूप में इंडिया की साख को चोट लग रही है। जिस तरह ने कुछ समय से एनजीओ और मीडिया को नियंत्रित करने की कोशिश की है वह लोकतंत्र के लिए अच्छा नही है। एनजीओ पर राष्ट्र विरोधी हरकतों का आरोप लगाना दुनियाभर में निरंकुश सरकारों की हरकतों में शामिल रहा है। वहीं, धार्मिक अल्पसंख्यकों को निशाने पर लेने की घटनाओं के बारे में ताकतवर पीएम की चुप्पी से देश-विदेश में अच्छा संकेत नहीं गया है। यही वह पहलू है, जहां मोदी शासन से सबसे बड़ा फर्क पड़ा है। दुनिया में कोई पूर्ण लोकतांत्रिक देश नहीं है, लेकिन कुछ और लोकतांत्रिक होने की कोशिश करना अच्छा माना जाता है। मोदी की लीडरशिप में भारत के पीछे लौटने का खतरा दिख रहा है। भारत में कई गैर सरकारी संगठनों (एनजीओ) के खिलाफ सरकार की कार्रवाई पर अमेरिका ने भी चिंता जाहिर की है।
अमेरिका के भारत में राजदूत रिचर्ड वर्मा ने एक कार्यक्रम में कहा कि बदलाव के लिए शांतिपूर्वक काम करने वाले लोग सरकार विरोधी नहीं होते और देश की सुरक्षा को कमजोर नहीं करते, बल्कि वे बेहतरी की चाहत में सुरक्षा को मजबूत ही करते हैं। वर्मा ने कहा कि हाल की कुछ मीडिया रिपोर्टों पर उन्हें चिंता हुई है कि भारत में काम कर रहे कई गैर सरकारी संगठनों को चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। गौरतलब है कि मोदी सरकार ने अमेरिका के फोर्ड फाउंडेशन द्वारा भारत की कई एजेंसियों को मदद दिए जाने पर ऐतराज किया है और उसे निगरानी सूची में रख दिया है।
ग्रीनपीस इंडिया जैसे संगठनों को विदेशी मदद पर रोक भी लगाई है। सरकार ने विदेशी मदद पाने वाले 9,000 एनजीओ के लाइसेंस इस आधार पर रद्द कर दिए हैं कि इन संगठनों ने विदेशी सहायता कानून का उल्लंघन किया है लोकतंत्र चुनाओ से कहीं बढ़कर है मुक्त समाज को लगातार आप लोगों से जुड़े विषयों पर बहस और विचार करना चाहिए। राजनीतिक फायदे की आड़ में हम सख्त सवालों से नही बच सकते हम केवल इसलिए बहस से नहीं बच सकते क्योंकि हमें जवाब पसंद नही हैं .. चाहे वो कानून या पॉलिसीज को बदलने की बात हो या फिर उन्हें चुनौती देने का मामला हो जो शांतिपूर्वक बदलाव लाने में जुटे हैं वे सरकार के खिलाफ नही हैं।